यह कविता निकारागुआ के कवि एडविन कास्त्रो की है जिसे सोमोजा परिवार की कुख्यात, बर्बर तानाशाही के दौरान 18 मई, 1960 को जेल में क़त्ल कर दिया गया था I लम्बे संघर्षों और अकूत कुर्बानियों के बाद 1979 में सोमोजा तानाशाही को निकारागुआ की जनता ने धूल में मिला दिया I सोमोजा शासनकाल के दौरान ही पाब्लो नेरूदा को निकारागुआ के निर्वासित, बंदी और शहीद कवियों की रचनाओं का एक संकलन मिला जिसपर उन्होंने एक छोटी सी टिप्पणी लिखी जिसका शीर्षक था :'खून के थक्के, नफ़रत की लपटें !' यह कविता नेरूदा ने अपनी टिप्पणी में उद्धृत की है I आज के भारत में भी ज़िंदा दिलों वाले युवाओं के लिए इस कविता को पढ़ना एक प्रेरणादायी अनुभव होगा !
कल सब कुछ बदला होगा बर्खुरदार !
हमारे दुःख और तक़लीफ़ें खो जायेंगी अच्छाई की खातिर I
और नए, मज़बूत लोगों के भरोसेमंद हाथ
सख्ती से, उनके पीछे भेड़ देंगे दरवाज़े
हाँ, कल सब कुछ बदला होगा बर्खुरदार !
सिसकियाँ, वेदना और गोलियाँ बहुत हो गए अब
अपने बच्चों को पकड़ा अपनी उंगलियाँ
हर शहर की हर गली में तफ़रीह करोगे तुम
काश मैं भी चल सकता तुम्हारे साथ !
तुम्हारी तरुणाई को कोई नहीं फेंक सकेगा
दुखों के घटिया घटाटोप में,
जैसे फेंक दी उन्होंने मेरी I
तुम निर्वासन में नहीं मरोगे
अपने प्यारे देश से दूर
जैसे तुम्हारे दादा या मेरे पिता ...
हाँ, कल सब कुछ बदल जाएगा बर्खुरदार !
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