Friday, July 31, 2020

ऐसे ही याद और अभ्यास....

 

खजुहा कुक्कुर का पिल्ला, पलिहर का बानर, काना बिलार, धूर्त्त हुंड़ार, चतुर सियार, कमीना कुतरू, हरामी का पिल्ला, जूतिया, कबरबिज्जू, चमगादड़, तिलचट्टा, कनखजूरा, नाली का कीड़ा, समसान का गिद्ध, कफ़नखसोट, मुर्दाखोर, लम्पट, छिछोर, नकटा, दोगला, भूजाछोर, दोमुंहा सांप, दंगाइयों का मसीहा, जोम्बी उत्पादन फैक्ट्री का मैनेजर, मौत का सौदागर, क़ातिलों का सरगना, पूंजी की पतुरिया का दल्ला, ठग, चोट्टा, जेबकतरा, डाकू, गदहा, गलथेंथर, नासपीटा, मुंहझौंसा, मुंहपिटौना, लतखोर, बागड़, बकलोल, बउचट, गबरघिंचोर, धकरकसवा, लबड़धोंधो, लबरा, गलदोद, फेंकू, नौटंकी का भांड़ ... ... ...


कुछ नहीं, किसी को गरिया थोड़े रही हूं, बस ऐसे ही याद और अभ्यास कर रही थी । देख रही हूं, बहुत सारी गालियां और कोसने-सरापने वाले गंवई मुहावरे भूल गयी हूं । अभ्यास करना होगा।

जो भयंकर वाली हैं जिनको लगातार कोई सुन ले तो कान से खून निकलने लगता है, उनका भी बहुत बड़ा खजाना हुआ करता था। बचपन में गली में गोली और गिल्ली-डंडा खेलते समय इकट्ठा किया था और ए के-47 की तरह उनकी बौछार करने में महारत हासिल की थी। फिर शरीफ़ शहरी बनने के दौरान सब कुछ पीछे छूट गया।

अभी भी बहुत सारा याद है, पर यहां लिख नहीं सकती। भद्रजन भयग्रस्त हो जायेंगे और जुकरबर्ग के मूर्ख मुलाजिम मेरा अकाउंट ब्लाक कर देंगे । वैसे ही आये दिन चेतावनी देते रहते हैं।

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