कोरोना काल में बुर्जुआ वर्ग की कविता
मरो, मरो, जल्दी मरो !
कोरोना से या भूख से या इलाज के अभाव में
दूसरी किसी भी बीमारी से, या पैदल सैकड़ों और हज़ारों कि.मी. चलते हुए,
थककर, या कुचलकर किसी गाड़ी से,
या रेल लाइन पर कटकर,
या कमरे में पंखे से या खेत में किसी पेड़ से लटककर !
तुम मरो और मरने दो खाते-पीते सुरक्षित लोगों,
कवियों-कलाकारों-बौद्धिकों के ज़मीर और ईमान को !
इन बौद्धिकों की आत्मा को हीरामन तोता बनाकर
हमने क़ैद कर रखा है अपने भव्य सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों में !
मरने के सिवा तुम और कर भी क्या सकते हो
नंगे-भूखे-बेहाल कुचले हुए लोगो !
इसलिए मरो-मरो, जल्दी मरो !
तुम्हारी बस उतनी ही आबादी बची रहनी चाहिए कि
हमारे कल-कारखाने चलते रहें,
मंडियों में माल पहुँचता रहे,
हमारे घरों-गोदामों-दूकानों-दफ्तरों की सफाई-दफाई होती रहे
इसलिए ओ फ़ाजिल लोगो ! नंगे-बुच्चे उजरती गुलामो !
तुम मरो ! मरो ! जल्दी मरो !
(7जून, 2020)
मरो, मरो, जल्दी मरो !
कोरोना से या भूख से या इलाज के अभाव में
दूसरी किसी भी बीमारी से, या पैदल सैकड़ों और हज़ारों कि.मी. चलते हुए,
थककर, या कुचलकर किसी गाड़ी से,
या रेल लाइन पर कटकर,
या कमरे में पंखे से या खेत में किसी पेड़ से लटककर !
तुम मरो और मरने दो खाते-पीते सुरक्षित लोगों,
कवियों-कलाकारों-बौद्धिकों के ज़मीर और ईमान को !
इन बौद्धिकों की आत्मा को हीरामन तोता बनाकर
हमने क़ैद कर रखा है अपने भव्य सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों में !
मरने के सिवा तुम और कर भी क्या सकते हो
नंगे-भूखे-बेहाल कुचले हुए लोगो !
इसलिए मरो-मरो, जल्दी मरो !
तुम्हारी बस उतनी ही आबादी बची रहनी चाहिए कि
हमारे कल-कारखाने चलते रहें,
मंडियों में माल पहुँचता रहे,
हमारे घरों-गोदामों-दूकानों-दफ्तरों की सफाई-दफाई होती रहे
इसलिए ओ फ़ाजिल लोगो ! नंगे-बुच्चे उजरती गुलामो !
तुम मरो ! मरो ! जल्दी मरो !
(7जून, 2020)
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