Tuesday, June 09, 2020


कुछ फुटकल नोट्सस...

मैं वो भूतनी हूँ जो रात के अँधेरे में दुर्ग-नगर में घुसकर सारे पाखंडियों के मुखौटे चुराया करती हूँ ! तुम मुझे पकड़कर और मारकर भी मार नहीं सकते ! मैं आत्माओं की जासूस हूँ , तमाम दुरभिसंधियों के विरुद्ध, तमाम पाखंडों और अवसरवाद के विरुद्ध, एक चिरंतन छापामार योद्धा हूँ ! मैं एक नहीं हूँ, मैं हज़ारों में हूँ, इतने नैराश्यपूर्ण समय में भी! तुम कितनों को मारोगे? मैं रक्तबीज का बीज हूँ!

(7जून, 2020)

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समय जल रहा है । जो सोते रहेंगे, राख हो जायेंगे ।


(8जून, 2020)

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'क्लाइमेट चेंज' नहीं 'सिस्टम चेंज' की बात करो!


पूँजीवाद इस ग्रह को तबाह कर रहा है!


(9जून, 2020)

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झूठ सच की ज़मीन से ऊपर उठी कल्पना की एक उड़ान है। झूठ के बिना प्यार नहीं हो सकता। झूठ के बिना कहानियाँ नहीं हो सकती। कथा के लिए, कला के लिए, सच में झूठ मिलाना ही पड़ता है। हर सच का अपना झूठ होता है। गन्दे, घिनौने झूठ वे होते हैं जो स्वार्थ, ठगी या मुनाफे़ के लिए गढ़े जाते हैं। गन्दे झूठ बड़े-बड़े कारखानों में उत्पादित होते हैं और बाज़ारों में उनकी ख़रीद-फ़रोख़्त होती है। लेकिन हम यहाँ ज़रूरी, मानवीय, रचनात्मक और निर्दोष झूठों की बात कर रहे हैं।

(9जून, 2020)


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