Thursday, June 11, 2020

साँच को आँच क्या !


बहस दर्शन, विज्ञान या क्रान्तिकारी संघर्ष के कुछ बुनियादी मसलों पर भी हो, कुछ घुटे हुए "शिष्ट" बौद्धिक लोग अपने को शिष्टता की आड़ में तटस्थ कर लेते हैं ! ज्यादातर यह रणनीति हितों की सौदेबाजी के तौर पर अपनाई जाती है ! ये "शिष्ट" "कवि-हृदय" लोग किसी भी तरह के दार्शनिक-वैचारिक घपले या आत्मतुष्ट मूर्खता से दुखी या क्रुद्ध नहीं होते, पर अगर ऐसी प्रवृत्तियों पर आप प्रखरता से चोट करते हैं तो उनकी आत्मा दुखी हो जाती है !

अतिशय "कवि-हृदयता" और सौजन्य की आड़ में ज़रूरी बहसों में तटस्थता दिखाने वाला हर बौद्धिक या तो घाघ और चालाक होता है, या ऐसा परम मूर्ख जिसे विचारों और वैचारिक संघर्ष का कोई महत्व ही पता नहीं होता ! ऐसे लोगों की सेवा में कुछ महत्वपूर्ण विचारकों-लेखकों के कुछ विचार समर्पित हैं !

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शिष्टता संगठित तटस्थता है I
--पॉल वैलेरी

विज्ञान ने बहुत सारी बुराइयों का इलाज ढूँढ़ लिया होगा, लेकिन इसने उनमें से सबसे भयंकर बुराई का कोई इलाज नहीं ढूँढा है -- मनुष्यों की तटस्थता I
-- हेलेन केलर

प्यार का उलटा नफ़रत नहीं, बल्कि तटस्थता है I
-- विल्हेल्म स्टेकेल

हमारे साथी मनुष्यों के प्रति सबसे बुरा पाप उनसे घृणा करना नहीं, बल्कि उनके प्रति तटस्थ रहना है: यही अमानवीयता का सार हैI
-- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

कहते हैं कि दार्शनिक और बुद्धिमान लोग तटस्थ होते हैंI यह ग़लत है I तटस्थता आत्मा का पक्षाघात है, अकाल मृत्यु है I
-- अन्तोन चेख़व

(10जून, 2020)

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