Sunday, June 07, 2020

बड़े-बड़े बूड़ गइलन, गदहवा पूछे केतना पानी !


मार्क्सवाद पर उसने एक एग्जाम पास करने वाले गुटका जैसी घटिया और मार्क्सवाद की भयंकर दुर्व्याख्या करने वाली पुस्तक लिख मारी ! "विद्वत्समाज" कुछ नहीं बोला (शायद बोलने की औकात नहीं थी, या कोई "पवित्र गठबंधन" था )

फिर कश्मीर पर एक सारसंग्रहवादी "शोध-ग्रन्थ" लिख मारा, जिसकी निष्पत्तियाँ निहायत बुर्जुआ लिबरल और सोशल डेमोक्रेट किस्म की हैं I कूपमंडूकों,और चमचों और अज्ञानियों में काफी वाहवाही हुई ! फिर कश्मीरी पण्डितों पर एक ग्रन्थ लिख मारा ! इसकी मार्क्सवादी स्टडी सर्किल और मार्क्सवाद की पुस्तक के बाद इसकी इन दोनों किताबों की समीक्षा भी पेश की जायेगी !

अब इस आत्मग्रस्त अहम्मन्य बौने विदूषक का मन इतना बढ़ गया है कि यह गाँधी पर पुस्तक लिखने जा रहा है ! गाँधी एक दार्शनिक, एक सिद्धांतकार,एक राजनीतिक स्ट्रेटेजिस्ट और टैक्टिशियन के रूप में मार्क्सवादी विद्वानों, इतिहासकारों और दार्शनिकों के लिए एक जटिल परिघटना रहे हैं और इतिहासकारों-दार्शनिकों ने अबतक उनपर जो भी काम किया है, उनमें समस्याएं और असंतुलन रहे हैं ! अब एक जोकर गाँधी पर कलम चलाएगा ! हमें प्रतीक्षा है कि मार्क्सवाद की इतनी भोंडी-भोथरी समझ रखने वाला व्यक्ति गाँधी पर भला क्या लिखेगा ? हम बड़ी बेक़रारी से उस पुस्तक की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं,क्योंकि हम जानते हैं कि हिन्दी के कवि-लेखक तो मात्र उसका फ्लैप पढ़कर समीक्षा भी लिख देंगे, प्रशंसाओं की झड़ी लगा देंगे और और विमोचन-लोकार्पण करने दांत चियारे मंच पर भी पहुँच जायेंगे !

लेकिन पण्डे को कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं है ! गाँधी पर उस "महाशोध" की सम्यक-सांगोपांग विवेचना करने के लिए हमलोग पूरी कर्तव्य-निष्ठा के साथ तैयार हैं !
जब भी तू बिछाएगा अपने फर्जी मार्क्सवाद की खाट
तब-तब हम लगायेंगे पण्डे तेरी वाट !

हम एक बार फिर यह प्रस्ताव रख रहे हैं कि पंडा कहीं भी 3-4 दिनों की खुली बहस के लिए आ जाए और मार्क्सवाद की अपनी समझ को डिफेंड करे ! पूरी बहस कुछ ज़िम्मेदार, वरिष्ठ मार्क्सवादी विद्वानों की उपस्थिति में हो ! पारदर्शिता और न्याय की गारण्टी के लिए पूरी बहस की वीडियो-रिकॉर्डिंग हो और फिर उस बहस को यूट्यूब पर भी डाल दिया जाए I पण्डे तक कई "मध्यस्थों" ने यह प्रस्ताव पहुँचा भी दिया है, पर पंडा सनाका मारे हुए है I आखिर क्यों ? अगर वह एक जेनुइन बौद्धिक है और प्रतिबद्ध व्यक्ति है तो अपनी स्थापनाओं को डिफेंड करने खुले मंच पर क्यों नहीं आ रहा है ? इस बात का जवाब पंडा नहीं तो उसके संरक्षकों को, उसके साथ सारा आत्म-सम्मान त्यागकर समान हितों के आधार पर गुट बनाने वाले हिन्दी के कुछ वरिष्ठ कवियों-लेखकों को और उन लोगों को तो देना ही चाहिए जो पण्डे को गंभीर विद्वान् और जेनुइन मार्क्सवादी समझते हैं ! यह जो चालाकी और तटस्थता-भरी चुप्पी छाई हुई है, यह बेहद गंदी और कमीनी किस्म की चीज़ होती है ! दम है तो पक्ष लो और मुँह खोलकर बोलो ! नहीं तो हम तो यह पूछते ही रहेंगे:"आपकी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर ?" यह मुगालता छोड़ दीजिये कि चुप्पी के षड्यंत्र से आप हमारी आवाज़ को दबा देंगे, या गिरोहबंदी करके हमें ठिकाने लगा देंगे ! हम आपके जीवन के छोर तक आपका पीछा करेंगे, आप पर लिखेंगे और युवा कवियों-लेखकों-कलाकारों की ऊर्जस्वी टीम खड़ी करके आपको हाशिये पर डाल देंगे ! पहले यह काम हमारे एजेंडा पर नहीं था, इसलिए मूर्खों, सत्ताधर्मी छद्म वामपंथियों और कैरियरवादी विदूषकों की धमाचौकड़ी के विरुद्ध हम कुछ कर नहीं पाते थे ! अब करेंगे !

फासीवाद के विरुद्ध जुझारू क्रांतिकारी लामबंदी के लिए बैठे-ठाले, कायर, निठल्ले, अवसरवादी छद्म-वामियों के चेहरों से नक़ाब उतारना भी बहुत ज़रूरी है !

(6जून, 2020)


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