दिल्ली की साहित्यिक मंडी में ... ...
सब गंदा है पर धंधा है !
जिसको देखो नंगा है पर
किताबें छपाकर, विदेश-यात्राएँ करके,
77 भाषाओं में अनुवाद कराकर,
सत्ता और प्रगतिशील मंचों से एक साथ सम्मानित होकर,
पियक्कड़ों-लम्पटों से चुम्मा-चुम्मी करके
चंगा है भई चंगा है
टंच, चकाचक चंगा है !
गिनते-गिनते थक जाओगे,
देखो, कितने बिल्ला हैं और कितने-कितने रंगा हैं !
संस्कृति का यह कोठा बेसमेंट सहित छःतल्ला है !
कोई मंडी हाउस का तो कोई 'दरियागंज का दल्ला' है !
(2जून, 2020)
सब गंदा है पर धंधा है !
जिसको देखो नंगा है पर
किताबें छपाकर, विदेश-यात्राएँ करके,
77 भाषाओं में अनुवाद कराकर,
सत्ता और प्रगतिशील मंचों से एक साथ सम्मानित होकर,
पियक्कड़ों-लम्पटों से चुम्मा-चुम्मी करके
चंगा है भई चंगा है
टंच, चकाचक चंगा है !
गिनते-गिनते थक जाओगे,
देखो, कितने बिल्ला हैं और कितने-कितने रंगा हैं !
संस्कृति का यह कोठा बेसमेंट सहित छःतल्ला है !
कोई मंडी हाउस का तो कोई 'दरियागंज का दल्ला' है !
(2जून, 2020)

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