कुछ प्रबुद्ध, विचार-संपन्न और कवि-ह्रदय लोग मनुष्य के 'अच्छा मनुष्य' होने पर बहुत बल देते हैं ! वैसे यह बात आम तौर पर तो ठीक है लेकिन इन प्रबुद्ध जनों से मैं यह निवेदन करना चाहूँगी कि 'अच्छा मनुष्य' होना मृदुभाषी और मिलनसार होने से,या विवादों से अलग रहने से, या गलत और अनैतिक होने पर भी अपने किसी मित्र का बचाव करने से, या सैद्धांतिक मसलों पर रिश्तों को प्राथमिकता देने से नहीं तय होता ! बल्कि इसके विपरीत ऐसा आचरण करने वाले कई बार तो नासमझ शांतिवादी न होकर काफी घुटे हुए, चालाक किस्म के लोग होते हैं !
मेरे ख़याल से अच्छा मनुष्य अगर मनुष्यों और मनुष्यता से प्यार करता है, तो वह सबसे पहले अपने विचारों पर अडिग होता है, साफगो होता है और अपने उसूलों के लिए संघर्ष करता है I वह सही और गलत के बीच तटस्थ नहीं रहता I वह फैसलाकुन होता है I दुनिया इतनी सरल नहीं है कि 'पड़ोसी को प्यार करो, सबकी मदद करो, गरीब और दुखियारे लोगों के बारे में सोचो' टाइप अच्छाई की धार्मिक परिभाषा को जीवन में लागू करके कोई अच्छा आदमी बन जाए ! वैसे इन सूत्रों को कोई निरपेक्षतः जीवन में लागू भी नहीं करता ! हो सकता है कि अच्छा मनुष्य स्वभाव से थोड़ा कटु हो और, ब्रेष्ट के शब्दों में कहें तो, बुराई से लड़ते-लड़ते उसकी आवाज़ में थोड़ी कर्कशता आ गयी हो, पर इसे उसकी सहज मानवीय कमजोरी मानी जानी चाहिए, क्योंकि अच्छे से अच्छा मनुष्य भी मानवीय कमजोरियों से मुक्त नहीं हो सकता I
(2जून, 2020)

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