Tuesday, February 18, 2020

आठवें पेग के बाद एक क़बूलनामा

आठवें पेग के बाद एक क़बूलनामा

क्या बताऊँ मैं दोस्तो आपको

अपने दिल का हाल !

मैं भी चलता शाहीन बाग़

और ऐसी तमाम जगहों पर जाता,

पार्कों में रतजगे करता,

पुलिस की लाठियाँ खाता, जेल जाता

पर आपको मेरी मजबूरी समझनी होगी !

नहीं-नहीं, बात यह नहीं है कि मेरी

सेहत बेहद खराब है, ब्लड प्रेशर, शूगर, गठिया,

थायरायड -- सबकुछ की हालत खराब है

और पत्नी की सेहत, और उससे भी बढ़कर उनका मिजाज़

आप जानते ही हैं और यह भी आप जानते ही हैं कि मेरे बच्चे

मुझे ख़ब्ती समझते हैं और मोदी को

नए भारत का निर्माता समझते हैं !

लेकिन ये सब कारण नहीं हैं

मेरे आपके बीच न होने का !

अरे मैं तो दाभोलकर, पानसारे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश की तरह

किसी फासिस्ट हत्यारे की गोली से मरने के लिए भी तैयार होता

अगर मैं पहले से ही मरा हुआ नहीं होता !

यह मेरे जीवन का विस्मयकारी जादुई यथार्थ है

कि मरा हुआ मैं जीवितों की दुनिया में

आम ज़िंदगी जीता हुआ भटकता रहता हूँ

और मुर्दों के टापू और टीले तलाशता रहता हूँ

जहाँ सुकून के कुछ लम्हे बिता सकूँ !

मैं आज आपके सामने अपना दिल

खोलकर रख देना चाहता हूँ,

अपने सारे राज़ उगल देना चाहता हूँ !

सच तो यह है कि मैं कई-कई बार मर चुका हूँ,

इतना मर चुका हूँ कि अब मरने को भी कुछ नहीं बचा !

घर-गिरस्ती में घिस-घिसकर मरा,

अखबार के दफ्तर में मालिक के आदेश पर झूठ की दलाली करके

नौकरी बचाते और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए

पिस-पिसकर मरा,

प्राध्यापकी के चरखे में घुट-घुट कर मरा

और अफसरी करते हुए कुत्ते की मौत मरा,

हत्यारों के हाथों पुरस्कृत होते हुए मरा,

फासिस्टों और महाभ्रष्ट और दुराचारी नेताओं को माला पहनाते हुए मरा,

गुण्डे के साथ मंच सुशोभित करते हुए मरा,

पूँजीपतियों के प्रतिष्ठानों और सरकारी अकादमियों में

पदासीन हो-होकर मरा,

बंगला और गाड़ी लेकर मरा,

जीवन को अधिकतम संभव आर्थिक सुरक्षा देकर मरा,

और यह सबकुछ करते हुए जब-जब

रचना और भाषणों में प्रगतिशीलता की दुहाई दी

तब-तब मरा, कभी एक गिरगिट की मौत

तो कभी एक सियार की मौत !

तो दोस्तो, ईमानदारी की बात यह है कि

इतने मरे हुए आदमी को जहाँ भी ले जाओगे

वहाँ लाशों की बदबू फ़ैल जायेगी !

बेहतर यही होगा कि तुमलोग मुझे

मेरी सुविधाओं, भय, कमीनगी, विद्वत्ता और बेशर्मी के साथ

अकेला छोड़ दो !

(2फरवरी, 2020)

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