यक ब यक ही हुआ वह हादसा
कि मैं इस क़दर सुखी और संतुष्ट लोगों से घिर गयी
एक वह्शतअंगेज़ वक़्त में
जब अँधेरा लोगों की रगों में खून के साथ
घुल-मिलकर बहने की खौफ़नाक कोशिशों में लगा हुआ था I
उन लोगों को अगर ज़माने से और हुक्मरानों से
कुछ शिकायतें भी थीं तो बस थोड़ी-बहुत
बेहद दोस्ताना शिकायतें थीं
और उनका कहना था कि जो ऊपर बैठे होते हैं
उनकी बहुत सारी मजबूरियाँ होती हैं
जिन्हें नीचे वाले समझ ही नहीं सकते I
वे सभी जैसे किसी अतियथार्थवादी पेंटिग के फ्रेम में
जकड़े हुए सपाट चेहरे वाले लोग थे
जो बड़े प्यार से मुझे अपने बीच
जगह देने की कोशिश कर रहे थे I
मैं किसीतरह बाहर निकल तो आयी
उस महफ़िल से मगर उसकी यादें मुझे
कई-कई दिनों तक
बुरे सपनों की तरह सताती रहीं !
(1नवम्बर, 2019)
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