Monday, September 23, 2019

तानाशाह और भीड़


तानाशाह के पास
अपने वफ़ादार वर्दीधारी सैनिक थे,
अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि थे,
अपने अमले-चाकर थे,
अफ़सर-मुलाज़िम-कारकुन थे,
अपनी न्यायपालिका थी,
अपने शिक्षा-संस्थान थे जहाँ
टैंक खड़े रहते थे और तानाशाही तले
जीने की शिक्षा दी जाती थी I

पर तानाशाह की सबसे बड़ी ताक़त
हिंसक भेड़ियों के झुण्ड जैसी वह भीड़ थी
जो तानाशाह के लोगों ने
बड़ी मेहनत से तैयार की थी I
इसमें समाज के अँधेरे तलछट के लोग थे
और सीलन भरे उजाले के पीले-बीमार
चेहरों वाले लोग थे
और जड़ों से उखड़े हुए सूखे-मुरझाये हुए लोग थे I
यह भीड़ तानाशाह के इशारे पर
किसीको बोटी-बोटी चबा सकती थी,
सड़कों पर उन्माद का उत्पात मचा सकती थी,
बस्तियों को खून का दलदल बना सकती थी I

सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी I
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है I

एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है !

(22 सितम्‍बर, 2019)

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