Saturday, January 26, 2019

खिलता है जाड़े का यह दिन

एक अकेले मृत गुलाब के साथ,

रात अपने जहाज़ तैयार करती है,

आसमान की पंखुड़ियाँ झड़ती हैं

और जीवन लौटता है अपनी दिशा खोकर

खुद को बटोरने के लिए वाइन के गिलास में I

-- पाब्लो नेरूदा ( Today Also Is )



फासिस्ट आतताईपन के "अतियथार्थ" और प्रतिरोध की सामाजिक जनवादी औपचारिकताओं एवं बुर्जुआ प्रहसनों के बीच नेरूदा की ये पंक्तियाँ सहज ही याद आने लगती हैं, चुभती हुई सी ! नेरूदा ने यह "अतियथार्थवादी" शेड किसी हद तक लोर्का के प्रभाव में अपनाया था I

कुछ दिनों पहले एक लिबरल, सोशल डेमोक्रेट टाइप वाम बुद्धिजीवी के साथ एक शाम गुजारने का मौक़ा मिला I वह करीब घंटे भर तक बढ़ती फासिस्ट बर्बरता के बारे में भय-मिश्रित चिंता और खिन्नता जाहिर करते रहे और इस बात पर विशेष क्षोभ प्रगट करते रहे कि कांग्रेस और सभी विपक्षी दल और संसदीय वामपंथी लोकतंत्र को बचाने की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को समझते क्यों नहीं औए जल्दी से मोर्चा क्यों नहीं बना लेते ! फिर अपने बिल्लौरी कांच के गिलास में लाल वाइन ढालते हुए उन्होंने मुझसे पूछा कि आने वाले चुनावों में बी.जे.पी. हारेगी या ई.वी.एम. के सहारे जीत जायेगी ? कुछ बोलने की जगह मैं गिलास में भरते हुए वाइन को देख रही थी I उसका रंग एकदम खून की तरह लाल था !

मुझे यह भी लगा कि एक सोशल डेमोक्रेट का दिशाहीन, बिखरा हुआ जीवन वाइन के गिलास में अपने को बटोर रहा है I फिर मुझे नेरूदा की ये पंक्तियाँ बेसाख्ता याद आयीं !

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जिन लोगों को हम प्यार करते हैं उनके प्यार को महसूस करना वह आग है जो हमारी ज़िन्दगी को ख़ुराक देती है।
-- पाब्लो नेरूदा

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