लूशुन (चीन के महान कथाकार)
दुनिया में अतिरिक्त उत्पादन के कारण आर्थिक संकट पैदा हो गया है। हालांकि तीन करोड़ से भी ज़्यादा मज़दूर भूखे मर रहे हैं पर खाद्यान्न का अतिरिक्त भंडार एक ''वस्तुगत सच्चाई'' है। ऐसा न होता तो अमरीका हमें गेहूं उधार नहीं दे पाता और हमें ''जबर्दस्त फसल की आपदा'' नहीं झेलनी पड़ती।
लेकिन ज्ञान भी अतिरिक्त हो जा सकता है जिसके चलते और भी गंभीर संकट पैदा हो जाता है। कहा जा रहा है कि आज गांवों में शिक्षा का जितना ही विस्तार होगा, देहातों की कंगाली उतनी ही तेजी से होगी। निस्संदेह यह एक जबर्दस्त मानसिक फसल की आपदा है। कपास बेहद सस्ती हो गयी है इसलिये अमरीकी अपने यहां कपास के खेतों को ही खत्म कर कर रहे हैं। इसी तरह चीन को भी ज्ञान का खात्मा कर देना चाहिये। यह पश्चिम से सीखा गया एक बेहतरीन नुस्खा है।
पश्चिमी लोग बड़े काबिल हैं। पांच-छह साल पहले जर्मनी वालों ने शिकायत की कि उनके यहां कालेजों में छात्र-छात्राओं की तादाद बहुत ज्यादा हो गयी है और कई राजनीतिज्ञों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने युवाओं को यह सलाह देने के लिये खासा शोरशराबा किया कि उन्हें विश्वविद्यालयों में दाखिला नहीं लेना चाहिए। आज जर्मनी में वे न केवल यह सलाह दे रहे हैं बल्कि ज्ञान को समाप्त करने की प्रक्रिया भी शुरू कर चुके हैं। वे चुन-चुन कर किताबों को जला रहे हैं, लेखकों को अपनी पाण्डुलिपियां निगल जाने को हुक्म दे रहे हैं और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के समूहों को लेबर कैम्पों में बंद कर रहे हैं - इसे ''बेरोजगारी की समस्या के समाधान'' के रूप में जाना जाता है। क्या आज चीन में भी यह शिकायत नहीं की जा रही है कि कानून और कला के विषयों में बहुत अधिक विद्यार्थी हो गये हैं? यही नहीं, हमारे यहां तो हाई स्कूल के विद्यार्थी भी बहुत ज्यादा हैं। इसलिये एक ''सख्त'' परीक्षा प्रणाली को लोहे के झाड़ू की तरह चलाये जाने की ज़रूरत है - सड़ाक, सड़ाक, सड़ाक ! - सभी फालतू युवा बुद्धिजीवियों को बुहार कर ''जनसाधारण'' के ढेर में गिरा देना चाहिए।
अतिरिक्त ज्ञान से संकट कैसे हो सकता है? क्या यह एक तथ्य नहीं है कि करीब नब्बे प्रतिशत चीनी जनता निरक्षर है? हां, लेकिन अतिरिक्त ज्ञान भी एक ''वस्तुगत सच्चाई'' है और इससे पैदा होने वाला संकट भी। जब आपके पास ज़रूरत से ज्यादा ज्ञान हो जाता है तो आप या तो बहुत ज्यादा कल्पनाशील हो जाते हैं या बहुत ज्यादा नरमदिल। अगर आप बहुत ज्यादा कल्पनाशील होंगे तो आप बहुत ज्यादा सोचेंगे। अगर आप बहुत ज्यादा नरमदिल होंगे तो आप निर्मम नहीं हो पायेंगे। या तो आप अपना संतुलन खो बैठेंगे या फिर दूसरों के संतुलन के साथ छेड़छाड़ करेंगे, और इसी तरह आपदा आती है। इसीलिये ज्ञान को खत्म कर दिया जाना चाहिये।
लेकिन सिर्फ ज्ञान को खत्म करना ही काफी नहीं है। उचित व्यावहारिक शिक्षा भी ज़रूरी है। पहली ज़रूरत है एक भाग्यवादी दर्शन - लोगों को खुद को नियति के हाथों में छोड़ देना चाहिये और अगर उनका भाग्य दुख भरा हो तो भी उन्हें संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरी ज़रूरत है मतलबपरस्ती में महारत। हवा का रुख पहचानों और और आधुनिक हथियारों की ताकत के बारे में जानों। कम से कम इन दो व्यावहारिक पाठ्यक्रमों को तुरन्त बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इन्हें बढ़ावा देने का तरीका बड़ा सीधा-सादा है। पुराने ज़माने में भाववाद का विरोध करने वाले एक दार्शनिक का कहना था कि अगर तुम्हें इसमें संदेह है कि आटे के कटोरे का अस्तित्व है या नहीं, तो तुम इसे खा लो और देखो कि तुम संतुष्ट महसूस करते हो या नहीं। इसलिये आज अगर आप लोगों को बिजली के बारे में समझाना चाहते हैं तो आप उन्हें बिजली का झटका देकर देख सकते हैं कि उन्हें चोट लगती है या नहीं। अगर आप उन्हें हवाई जहाजों या ऐसी ही चीज़ों के कारनामों से प्रभावित करना चाहते हैं तो आप उनके सिरों के ऊपर से हवाई जहाज उड़ा कर बम गिरा सकते हैं, यह देखने के लिए कि वे मरते हैं या नहीं...
इस तरह की व्यावहारिक शिक्षा हो तो अतिरिक्त ज्ञान की समस्या कभी होगी ही नहीं। आमीन!
दुनिया में अतिरिक्त उत्पादन के कारण आर्थिक संकट पैदा हो गया है। हालांकि तीन करोड़ से भी ज़्यादा मज़दूर भूखे मर रहे हैं पर खाद्यान्न का अतिरिक्त भंडार एक ''वस्तुगत सच्चाई'' है। ऐसा न होता तो अमरीका हमें गेहूं उधार नहीं दे पाता और हमें ''जबर्दस्त फसल की आपदा'' नहीं झेलनी पड़ती।
लेकिन ज्ञान भी अतिरिक्त हो जा सकता है जिसके चलते और भी गंभीर संकट पैदा हो जाता है। कहा जा रहा है कि आज गांवों में शिक्षा का जितना ही विस्तार होगा, देहातों की कंगाली उतनी ही तेजी से होगी। निस्संदेह यह एक जबर्दस्त मानसिक फसल की आपदा है। कपास बेहद सस्ती हो गयी है इसलिये अमरीकी अपने यहां कपास के खेतों को ही खत्म कर कर रहे हैं। इसी तरह चीन को भी ज्ञान का खात्मा कर देना चाहिये। यह पश्चिम से सीखा गया एक बेहतरीन नुस्खा है।
पश्चिमी लोग बड़े काबिल हैं। पांच-छह साल पहले जर्मनी वालों ने शिकायत की कि उनके यहां कालेजों में छात्र-छात्राओं की तादाद बहुत ज्यादा हो गयी है और कई राजनीतिज्ञों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने युवाओं को यह सलाह देने के लिये खासा शोरशराबा किया कि उन्हें विश्वविद्यालयों में दाखिला नहीं लेना चाहिए। आज जर्मनी में वे न केवल यह सलाह दे रहे हैं बल्कि ज्ञान को समाप्त करने की प्रक्रिया भी शुरू कर चुके हैं। वे चुन-चुन कर किताबों को जला रहे हैं, लेखकों को अपनी पाण्डुलिपियां निगल जाने को हुक्म दे रहे हैं और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के समूहों को लेबर कैम्पों में बंद कर रहे हैं - इसे ''बेरोजगारी की समस्या के समाधान'' के रूप में जाना जाता है। क्या आज चीन में भी यह शिकायत नहीं की जा रही है कि कानून और कला के विषयों में बहुत अधिक विद्यार्थी हो गये हैं? यही नहीं, हमारे यहां तो हाई स्कूल के विद्यार्थी भी बहुत ज्यादा हैं। इसलिये एक ''सख्त'' परीक्षा प्रणाली को लोहे के झाड़ू की तरह चलाये जाने की ज़रूरत है - सड़ाक, सड़ाक, सड़ाक ! - सभी फालतू युवा बुद्धिजीवियों को बुहार कर ''जनसाधारण'' के ढेर में गिरा देना चाहिए।
अतिरिक्त ज्ञान से संकट कैसे हो सकता है? क्या यह एक तथ्य नहीं है कि करीब नब्बे प्रतिशत चीनी जनता निरक्षर है? हां, लेकिन अतिरिक्त ज्ञान भी एक ''वस्तुगत सच्चाई'' है और इससे पैदा होने वाला संकट भी। जब आपके पास ज़रूरत से ज्यादा ज्ञान हो जाता है तो आप या तो बहुत ज्यादा कल्पनाशील हो जाते हैं या बहुत ज्यादा नरमदिल। अगर आप बहुत ज्यादा कल्पनाशील होंगे तो आप बहुत ज्यादा सोचेंगे। अगर आप बहुत ज्यादा नरमदिल होंगे तो आप निर्मम नहीं हो पायेंगे। या तो आप अपना संतुलन खो बैठेंगे या फिर दूसरों के संतुलन के साथ छेड़छाड़ करेंगे, और इसी तरह आपदा आती है। इसीलिये ज्ञान को खत्म कर दिया जाना चाहिये।
लेकिन सिर्फ ज्ञान को खत्म करना ही काफी नहीं है। उचित व्यावहारिक शिक्षा भी ज़रूरी है। पहली ज़रूरत है एक भाग्यवादी दर्शन - लोगों को खुद को नियति के हाथों में छोड़ देना चाहिये और अगर उनका भाग्य दुख भरा हो तो भी उन्हें संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरी ज़रूरत है मतलबपरस्ती में महारत। हवा का रुख पहचानों और और आधुनिक हथियारों की ताकत के बारे में जानों। कम से कम इन दो व्यावहारिक पाठ्यक्रमों को तुरन्त बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इन्हें बढ़ावा देने का तरीका बड़ा सीधा-सादा है। पुराने ज़माने में भाववाद का विरोध करने वाले एक दार्शनिक का कहना था कि अगर तुम्हें इसमें संदेह है कि आटे के कटोरे का अस्तित्व है या नहीं, तो तुम इसे खा लो और देखो कि तुम संतुष्ट महसूस करते हो या नहीं। इसलिये आज अगर आप लोगों को बिजली के बारे में समझाना चाहते हैं तो आप उन्हें बिजली का झटका देकर देख सकते हैं कि उन्हें चोट लगती है या नहीं। अगर आप उन्हें हवाई जहाजों या ऐसी ही चीज़ों के कारनामों से प्रभावित करना चाहते हैं तो आप उनके सिरों के ऊपर से हवाई जहाज उड़ा कर बम गिरा सकते हैं, यह देखने के लिए कि वे मरते हैं या नहीं...
इस तरह की व्यावहारिक शिक्षा हो तो अतिरिक्त ज्ञान की समस्या कभी होगी ही नहीं। आमीन!
बढ़िया ।
ReplyDelete"अगर आप बहुत ज्यादा कल्पनाशील होंगे तो आप बहुत ज्यादा सोचेंगे। अगर आप बहुत ज्यादा नरमदिल होंगे तो आप निर्मम नहीं हो पायेंगे।"
ReplyDeleteसबसे भले वे मूढ़ जिनहि न व्यापत जगत गति! :-)