''अगर हम मानव इतिहास के आरम्भ में जायें तो हम पायेंगे कि अज्ञान और भय ने देवताओं को जन्म दिया; कि कल्पना, उत्साह या छल ने उन्हें महिमामण्डित या लांछित किया; कि कमज़ोरी उनकी पूजा करती है; कि अन्धविश्वास उन्हें संरक्षित रखता है, और प्रथाएं, आस्थाएं और निरंकुशता उनका समर्थन करती हैं ताकि मनुष्य के अन्धेपन का लाभ अपने हितों की पूर्ति के लिए उठाया जा सके।''
-बैरन द' होल्बाख(प्रबोधनकालीन फ्रांसीसी दार्शनिक)
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