फैसला
आदर्शों के कोड़े खाकर
बिदका मन का घोड़ा।
थोड़ा जीवन धूल में उड़ा
गाद में गिरा थोड़ा।
जाने किन-किन दीवारों से
जा-जाकर सिर फोड़ा।
दूर बैठकर देख रहा था
सब कुछ समय निगोड़ा।
चाहे जो भी हो पर
कहलाएंगे नहीं भगोड़ा।
यही ठानकर नैया को
हमने धारा में मोड़ा।
-कविता कृष्णपल्लवी
चाहे जो भी हो पर
ReplyDeleteकहलाएंगे नहीं भगोड़ा।
यही ठानकर नैया को
हमने धारा में मोड़ा।
Behtreen .....Sakaratmak bhav