Friday, July 24, 2020


आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाये तो ज़िन्दगी भर प्रोफ़ेसर ही रहता है , चाहे बाद में वह समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे।

-- मुश्ताक अहमद यूसु़फ़ी
(पाकिस्तानी व्यंग्यकार)


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जब मैं ग़रीबों को खाना देता हूँ, तो वे मुझे संत कहते हैं I जब मैं पूछता हूँ कि ग़रीबों के पास खाना क्यों नहीं है, तो वे मुझे कम्युनिस्ट कहते हैं !

-- डॉम हेल्डर कैमेरा (1909-1999)

(डॉम हेल्डर पेस्सोआ कैमेरा ब्राज़ील के कैथोलिक चर्च के एक आर्चबिशप थे जिन्होंने अमेरिका-समर्थित तानाशाहों के शासन काल के दौरान शोषित-उत्पीडित आम आबादी के बीच काम करते हुए, अमेरिका से ही वित्त-पोषित चर्च से जुड़े और स्वतंत्र एन जी ओ'ज़ की असली भूमिका को पहचाना था I वे इस नतीजे पर पहुँचे थे कि साम्राज्यवादी दाता एजेंसियों के वित्त-पोषण से जितने भी एन जी ओ तमाम चैरिटी और शिक्षा-स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में सुधार का काम कर रहे हैं, वे वस्तुतः इस सिस्टम के असली चरित्र पर ही पर्दा डाल रहे हैं, जनता की विद्रोही चेतना को कुंद कर रहे हैं, वर्ग-अंतरविरोधों को धूमिल कर रहे हैं और 'संत' का मुखौटा लगाकर शैतान की सेवा कर रहे हैं ! कैमेरा आगे चलकर 'लिबरेशन थियोलॉजी' के समर्थक हो गए थे और इस नाते साम्राज्यवादियों के साथ ही वेटिकेन के भी कोपभाजन हो गए थे I ईश्वर और चर्च में आस्था के बावजूद कैमेरा पूँजीवाद के मार्क्स द्वारा किये गए पूँजीवाद के विश्लेषण को सही मानते थे और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना जन-समुदाय का अधिकार मानते थे I)


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" सर्वहारा वर्ग के पास आत्मरक्षा का सुसंगठित तंत्र होना चाहिए । फासिस्ट जब भी हिंसा का इस्तेमाल करें , उसका जवाब सर्वहारा हिंसा से दिया जाना चाहिए । मेरा मतलब व्यक्तिगत आतंकवादी कार्रवाइयों से नहीं है , बल्कि सर्वहारा के संगठित क्रांतिकारी वर्ग-संघर्ष की हिंसा से है । 'फैक्ट्री हंड्रेड्स' संगठित करने के द्वारा जर्मनी ने एक शुरुआत कर दी है । यह संघर्ष तभी सफल होगा जब एक सर्वहारा संयुक्त मोर्चा होगा । इस संघर्ष के लिए मजदूरों को इस बात का खयाल किए बिना संगठित होना होगा कि वे किस पार्टी से जुड़े हैं । सर्वहारा संयुक्त मोर्चे की स्थापना के लिए सर्वहारा की आत्मरक्षा सबसे बड़े उत्प्रेरकों में से एक है । केवल हर मजदूर को वर्ग-चेतना से लैस करके ही हम फासीवाद को सामरिक रूप से उखाड़ फेंकने की तैयारी भी सफलतापूर्वक कर सकेंगे , जो इस मुकाम पर अनिवार्यतः आवश्यक है ।

--- क्लारा जेटकिन (फासीवाद , 1923)


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समझदार आदमी नज़र हमेशा नीची और नीयत ख़राब रखता है I

--मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
(पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार)


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अगर हमेशा नीचे की ओर देखते रहोगे तो इन्द्रधनुष कभी नहीं देख पाओगे ।

-- चार्ली चैप्लिन


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सर्वहारा नायक को कमजोरियों और अन्तर्द्वन्द्वों से मुक्त एक विराट व्यक्तित्व के रूप में चित्रित करने का मतलब दर्शकों को यह बताना है कि क्रांतिकारी बनना असंभव है I दर्शकों के बीच मौजूद कोई मज़दूर या किसान उसे देखकर यह नतीज़ा निकालता है,"मैं उसके जैसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि मेरी बहुत सारी कमज़ोरियाँ हैं I" हमारा नायक किसी भी अन्य इंसान जैसा जटिल होना चाहिए I ज़िन्दगी के बहुतेरे मामलों में उसका रवैया ग़लत हो सकता है I वह अपने घरेलू जीवन में नाखुश हो सकता है I वह एक खराब प्रेमी हो सकता है, एक निरंकुश पिता हो सकता है, या एक एहसानफ़रामोश बेटा हो सकता है I सिर्फ़ एक चीज़ में उसे सीधा, बेलागलपेट और समझौताहीन होना चाहिए, और वह है उसका वर्गीय रवैया I

-- उत्पल दत्त

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