Friday, July 24, 2020

जो थक गयी है, वह अगर तुम्हारी आत्मा है, तो नींद से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा!

 

पहाड़-समंदर घूमने से, संगीत-कला-साहित्य से भी बस थोडा फ़र्क पड़ेगा, और वह भी कुछ देर के लिए !

आत्मा की थकावट तो बस लीक तोड़कर जीने से दूर होती है, अन्याय के ख़िलाफ़ बग़ावत करने से दूर होती है, बर्बरों के ख़िलाफ़ निर्भीकता से सीना तानकर खड़े होने से दूर होती है, विज्ञान को कमान में रखकर प्रयोग और संधान भरा जीवन जीने से दूर होती है I

थकी-हारी आत्मा लिए घिसटते हुए, रेंगते हुए जीते चले जाने की तुलना में एक निर्भीक और तरोताज़ा आत्मा के साथ मौत से दो-दो हाथ करना, और यहाँ तक कि एक बेहद छोटा जीवन जीकर मृत्यु को वरण कर लेना भी लाख गुना श्रेयस्कर है I

अब ऐसी बातें करने का ज़माना नहीं रहा I "समझदार-सयाने" लोग ऐसी बातों को बचकानी भावुकता मानते हैं I वे "सुचिंतित साहस" की नसीहतें देते हैं और कहते हैं कि अभी उसका भी समय नहीं है I घोंसलों में बैठे पक्षी तूफानों में उड़ान भरते बाज को पागल समझते हैं I एक बेहद ठण्डे और ठहरे हुए समय में क्रांतिकारी बदलाव का सपना देखने और उद्यम करने वालों को भी पागल ही माना जाता है I

शान से, असली इंसान की तरह जीने के मजे लूटने हैं तो पागल हो जाओ !

(एक बार फिर कुछ दिल की बातें)

(24 जुलाई, 2020)


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जब जवानी की दहलीज़ पर थी तो ज़िन्दगी को एक महाकाव्य बनाना चाहती थी। फिर ज़िन्दगी की जटिलताओं से साबका पड़ा तो लगा कि ज़िन्दगी एक लम्बे उपन्यास जैसी ही हो सकती है, कुछ-कुछ अतियथार्थवादी या जादुई यथार्थवादी किस्म की। पर हालात कुछ ऐसे बने कि स्साली इनसिग्निफ़िकेण्ट कहानियों का अप्रकाशित संकलन बनकर रह गयी ।

-- पंद्रह वर्षों बाद मिली एक दोस्त जिसे बियर के चार गिलास गले के नीचे उड़ेलने के बाद इस "बोधिज्ञान" की प्राप्ति हुई!

(23 जुलाई, 2020)

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