Monday, January 21, 2019

लेनिन के उद्धरण...



... पार्टी के हर कार्यकर्ता में कुछ न कुछ कमज़ोरियाँ तथा उसके काम में ख़ामियाँ होती हैं, किन्तु कमज़ोरियों की आलोचना करते समय अथवा पार्टी केन्द्रों के सम्मुख उनका विश्लेषण करते समय , आदमी को इस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए कि वह उस सीमा से आगे न चला जाय जिसके बाद आलोचना महज एक बकवास बन जाती है I

(बोल्शेविक पार्टी के एक नेता और पेशेवर क्रांतिकारी पी.एन. लेपशिन्स्की के नाम जेनेवा से 29 अगस्त,1905 को लिखे गए पत्र का एक अंश)



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साथीपन, मित्रता और क्रांतिकारी कर्तव्य के बीच के अंतर्संबंधों के बारे में लेनिन के निम्नोक्त विचार पठनीय हैं! लक्ष्य की साझेदारी से विच्छिन्न मित्रता या प्रेम भाव पर बल देने वाले भाववादी उदारतावादी तो इसे ज़रूर पढ़ें!

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" ... साथी-भाव के कर्तव्य को, तमाम साथियों का समर्थन करने के कर्तव्य को, साथियों की रायों के प्रति सहिष्णुता बरतने के कर्तव्य को हम स्वीकार करते हैं; किन्तु जहाँतक हमारा सम्बन्ध है, साथी-भाव के प्रति हमारा कर्तव्य रूसी और अन्तरराष्ट्रीय सामाजिक जनवादी आन्दोलन के प्रति हमारे कर्तव्य-भाव से ही उत्पन्न होता है, अन्यथा नहीं I

'राबोचाया मिस्ल'* के प्रति भाईचारे के अपने कर्तव्यों को हम मानते हैं, लेकिन इसलिए नहीं कि उसके सम्पादक गण हमारे साथी हैं; 'राबोचाया मिस्ल' के संपादकों को केवल इसीलिये अपना साथी हम मानते हैं कि वे रूसी (और, इसलिए, अन्तरराष्ट्रीय ) सामाजिक जनवादी आन्दोलन में काम करते हैं I इसलिए, इस बात का पक्का विश्वास हो जाने पर कि "साथी लोग" पीछे की ओर, सामाजिक जनवादी पार्टी के कार्यक्रम से दूर जा रहे हैं, मज़दूर आन्दोलन के उद्देश्यों को वे सीमित और विकृत कर रहे हैं --- इस बात को हम अपना कर्तव्य समझते हैं कि अपने विचारों को इतनी दृढ़ता से सामने रख दें कि कोई चीज़ अस्पष्ट या अनकही न रह जाय I"


('रूस के सामाजिक जनवादी आन्दोलन में एक प्रतिगामी प्रवृत्ति' नामक लेख का अंश)

* 'राबोचाया मिस्ल' अर्थावादियों का अखबार था I लेनिन ने 'इस्क्रा' में प्रकाशित अपने लेखों और 'क्या करें' पुस्तक में 'राबोचाया मिस्ल' के विचारों की आलोचना की थी और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय अवसरवाद का रूसी संस्करण बताया था I


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जब क्रान्ति फूट पड़ी हो और चढ़ाव पर हो, जब सभी लोग क्रान्ति में शामिल हो रहे हों सिर्फ़ इसलिए कि वे उसमें बह गए हैं, क्योंकि यह चलन में है, और कभी-कभी कैरियरवादी मंशाओं से भी, उससमय क्रांतिकारी होना मुश्किल नहीं होता I जब प्रत्यक्ष, खुले और वास्तव में क्रांतिकारी संघर्ष की स्थितियाँ अभी अस्तित्व में न आयी हों, उससमय क्रांतिकारी होना कहीं ज़्यादा मुश्किल -- और कहीं ज़्यादा मूल्यवान -- होता है I

-- लेनिन ("वामपंथी" कम्युनिज्म : एक बचकाना मर्ज़ )

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