Friday, December 19, 2025

दुःख के बारे में एक और खोज

 

दुःख अंत की भाषा था ।

और भाषा का अंत था ।

अँधेरे का व्याकरण था दुःख 

और व्याकरण का अन्धेरा ।

दुःख था अकेलेपन की चीख 

और एक चीख का अकेलापन ।

दुःख अन्दर की खोहों की 

निरुद्देश्य खोजपूर्ण यात्रा था ।

दुःख अकेले भोग लेने की 

एक स्वार्थपूर्ण कामना था ।

दुःख जूते में घुसा हुआ एक कंकड़, 

बहा दिया गया आँसू का एक कतरा था ।

दुःख था बहुत कुछ जानना 

और लगातार जानना 

और सिर्फ़ जानना ।

दुःख आत्मा पर एक धब्बा था अपरिहार्य, 

दुनिया की तमाम अपूर्ण कामनाओं की 

हिलती हुई छाया था ।

यह पाया कि सबसे बड़ा दुःख था फिर भी 

यह जानना कि दुःख है 

और यह न जानना कि

इसके कारण क्या हैं ?

--- शशि प्रकाश 

    (नवम्बर, 1998)

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