कहना ज़रूरी है...
"प्यार को केवल स्वस्थ यौनिक सहज-वृत्ति की तृप्ति के रूप में ही नहीं समझा जाना चाहिए । इस अहसास को, जो हमें अत्यधिक आनन्द देता है, विचारधारात्मक अंतरंगता से, एक साझे लक्ष्य की आकांक्षा से, एक साझे उद्देश्य के लिए संघर्ष से जोड़ा जाना चाहिए।"
-- नदेज़्दा क्रुप्सकाया
(सुप्रसिद्ध बोल्शेविक क्रान्तिकारी, सोवियत शिक्षाशास्त्री और लेनिन की जीवन-साथी)

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