Sunday, May 04, 2025

कविता_रोशनाबाद

 

मुहब्बत का शजरा 

इलाही मियाँ, साकिन गाँव निजामपुर, ब्लॉक हसनपुरा, जिला सिवान, बिहार 

अब्बू की पिटाई और पढ़ाई के ख़ौफ़ से 

भागकर गये थे कलकत्ता 

जब मुल्क इमरजेंसी के ख़ौफ़ के साये तले

जी रहा था।

चटकल में जल्दी ही डबल ताँत चलाने लगे

और घर भेजने लायक कमाने लगे।

कलकत्ता में इश्क़ हुआ उनका 

एक मछली बेचने वाली बंगालन से।

बताते चलें कि इलाही मियाँ के अब्बू 

रज्जाक मियाँ भी नामी-गिरामी आशिक थे 

अपने ज़माने के।

सत्रह के थे जब अपने मामा की शादी में 

गये थे तरवारा बाज़ार से पचरुखिया।

फिर मामा से भी अधिक जाने लगे

उनके ससुराल और एक दिन 

मामी की छोटी बहन को ही भगा ले आये

निजामपुर।

फिर क्या था, निकाह होना ही था।

वापस लौट चलें इलाही मियाँ की दास्तान पर।

उन्नीस सौ अस्सी की दहाई में  कलकत्ता के 

चटकल जब बन्द हो रहे थे एक के बाद एक 

तो अपनी बंगालन बीवी और आठ साल की

बेटी सकीना को लेकर गाँव आ गये इलाही मियाँ 

और बटाई पर खेती करने लगे।

सकीना करने लगी दूसरों के खेतों में मजूरी 

अपनी माँ के साथ।

सत्रह की उम्र में 

निकाह हुआ सकीना का पास के गाँव के 

एक दुहाजू भट्ठा मालिक के साथ 

लेकिन वह दस दिनों बाद ही मायके भाग आयी।

पूछने पर बस इतना ही बताया कि मुआ

लगता भर साँड़ है, वैसे है पूरा बैल।

चन्द दिन ही गुज़रे थे कि 

सकीना का दिल जा लगा इमरान डफाली से 

जो ख़ानदानी पेशा छोड़ 

अब चूड़ियांँ बेचता था गाँव-गाँव घूमकर।

फिर सकीना ने घर बसाया उस छैल-छबीले

 इमरान मसूदी के साथ।

दोनों ने खोल ली चूड़ी-टिकुली की एक दुकान 

हसनपुरा बाज़ार में।

इधर गाँव वाले करते रहे तरह-तरह की बातें 

और बीवी के ज़ोर देने पर

इलाही मियाँ फिर चले गये कलकत्ता 

जो अब कोलकाता कहलाता था।

दिसम्बर 1992 में जब गिरायी गयी बाबरी मस्जिद 

उसी रात इमरान और सकीना की

झोंपड़ी जला दी गयी 

और लूट ली गयी दुकान।

इमरान के मामू जान लाये फिर दोनों को 

देवबंद अपने साथ।

सकीना की बेटी मुनीजा तब दो साल की थी।

आगे का किस्सा बस इतना रहा कि

इमरान मरा एक रोड एक्सिडेंट में 

और तीन साल बाद डेंगू ने जान ले ली सकीना की 

मुनीजा जब सोलह की थी।

इमरान के मामू मुनीजा की शादी 

करवाना चाहते थे अपने नवासे से 

लेकिन मुनीजा का दिल लगा था अनवर से

जो यतीम था और ख़ादिम था 

मदरसा मदनिया में तालीम देने वाले 

एक मौलवी साहिब का।

मौक़ा देख अनवर के साथ भाग आयी 

मुनीजा रोशनाबाद 

और पठानपुरा बस्ती में आ बसी जिसे सभी 

छोटा पाकिस्तान कहते हैं।

मुनीजा दवाइयों की एक फैक्ट्री में 

पैकिंग का काम करती है 

और अनवर मुलाज़िम है एक कूरियर कम्पनी में।

मुनीजा हँसोड़ है और हाज़िर जवाब भी।

कहती है,"मैं तो ख़ानदानी दिलफेंक हूँ आपा!

इश्क़ और मेहनत-मशक़्क़त - ये दो चीज़ें 

मेरे ख़ून में हैं!

मेरा शजरा मुहब्बत का शजरा है।"

**

डफाली - उप्र और बिहार में ओबीसी में वर्गीकृत एक मुस्लिम जाति जो पारम्परिक तौर पर सूफ़ी दरगाहों के बाहर या शादी-ब्याह और पारिवारिक उत्सवों के मौक़े पर डफ़ या डफ़ली बजाया करती थी।

शजरा - वंशवृक्ष।

(4 May 2025)


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