Wednesday, March 12, 2025

 अच्छे से अच्छे कवि या अपने बहुत प्रिय कवि से भी काव्य-शैली, रूपक या बिम्ब-विधान उधार लेने से अच्छी कविता नहीं बन जाती। 

अच्छी से अच्छी  चीज़ की अच्छी से अच्छी नक़ल भी एक प्रहसन ही होती है। 

जो कवि हमें बहुत अधिक प्रभावित करते हैं उनकी प्रभाव-छाया से मुक्त होने के बाद ही कलम उठानी चाहिए। पसंद करने और नक़ल करने में फ़र्क़ होना चाहिए। जूते और टोपी किसी की चाहे जितनी अच्छी लगे, पहननी तो अपनी ही चाहिए। 

जबतक किसी निजी पीड़ा, अनुभूति या प्रेक्षण का पर्याप्त अमूर्तन या सामान्यीकरण न हो जाये, जबतक कोई विचारपरक या सौन्दर्यपरक अवबोध अवधारणा में रूपांतरित न हो जाये तबतक उसे कविता में नहीं उतारना चाहिए। कविता कवि और पाठक जनसमुदाय के बीच एक विचारधारात्मक-भावनात्मक-सौन्दर्यात्मक सेतु होती है। यह निजी डायरी नहीं होती। इसे नितान्त वैयक्तिक भावोच्छवासों का टोकरा या आहों-कराहों या "पवित्र आत्मस्वीकृतियों" या वायदों-मनुहारों या भँड़ासों का कूड़ेदान मत बनाइए। यह सब अपने प्रेमी/प्रेमिका/प्रियजन से बातचीत और चिट्ठीपत्री करके कर लीजिए। जो निजी भाव सामान्यीकृत न हों वे कविता में आकर क्षुद्र चीज़ों की जुगुप्सापूर्ण नुमाइश बनकर रह जाते हैं चाहे रूपक और बिम्ब जितने भी सुन्दर गढ़ लिये जायें। 

भावों में उदात्तता के बिना काव्यात्मक सौन्दर्य पैदा नहीं किया जा सकता। और व्यक्तित्व में उदात्तता न हो तो भावों में उदात्तता हवा में से नहीं टपक पड़ेगी। 

आत्मसंघर्ष और व्यक्तित्वांतरण एक क्रान्तिकारी के लिए जितना ज़रूरी होता है, उतना ही एक सच्चे कवि के लिए भी ज़रूरी होता है। 

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(डायरी के इन्दराज, 12 मार्च 2025)


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