कुत्त कविता...
कुत्ती बोली हम तो बस अपना ही पेट भरे हैं
जनवादी कवियों को देखो कैसे त्याग करे हैं
ताकतवर लोगों की ड्योढ़ी पर ना शीश झुकावें
चाह नहीं पद-पीठ-प्रतिष्ठा रजधानी में पावें
कुत्ता बोला कुत्ती से, डार्लिंग वह गया ज़माना
सीखा है कुछ कवियों ने कविता से भी कुछ पाना
जनवादी कविता पढ़ वे बेचेंगे रजनीगंधा
बज्रबुद्धि क्या जानें कितनो चोखो है यह धंधा।
ऐसा धंधा कभी नहीं होता है जल्दी मंदा
धंधा तो धंधा है इसमें क्या सुथरा क्या गंदा
बने रहेंगे प्रगतिशील और उर्फ़ी संग नाचेंगे
हत्यारों का हृदय बदलकर शान्तिमंत्र बाँचेंगे
उनका जियरा लगा हुआ है जनगण के मंगल में
कौन भला देखेगा नाचे मोर अगर जंगल में
बहुत शुद्धतावादी होने से ना काम चलेगा
नहीं चढ़ा जो बड़े मंच पर कैसे बड़ा बनेगा
जनता का कवि बड़ा बना तो जनता बड़ी बनेगी
वरना अपने दुख के सागर में ही पड़ी रहेगी
रैम्पवाक कर कविगण अपना जलवा दिखला देंगे
लुच्चों और लफंगों को भी संस्कृति सिखला देंगे
कुत्ता फिर बोला दिल्ली जलसे में हम जायेंगे
नये ढंग का प्रगतिशील बनकर वापस आयेंगे
सनक गये हो बहक गये हो, भड़क के बोली कुत्ती
संग तुम्हारे दिल्ली जायेगी मेरी यह जुत्ती।
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लॉंग लिव द स्कूल ऑफ़ कुत्त पोयट्री!
(10 Nov 2024)
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