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काठ का कुन्दा
पोखर के किनारे पड़ा हुआ है
काठ का एक लम्बा कुन्दा
अपने एक सिरे से पानी को छूता हुआ,
दूसरा सिरा एक टूटी हुई झोंपड़ी में धँसा हुआ।
पानी में पड़े हिस्से को ढँक रखा है हरित शैवाल ने।
झोंपड़ी में धँसे हिस्से को छाप रखा है
छोटे-छोटे नीले फूलों वाली जंगली लतर ने।
बीच के हिस्से में एक छोटा सा खोखल है
किसी छोटी सी चिड़िया का बसेरा।
काठ के एक सड़ते हुए कुन्दे के पास भी
अगर इतनी ज़िन्दगी, इतनी उम्मीदें, इतना प्यार,
इतनी जिजीविषा, इतनी युयुत्सा
और हरियाली की इतनी जगह है
तो आदमी तो फिर भी आदमी है।
हाँ, अगर आदमी ही काठ का कुन्दा बन चुका हो
तो मामला संगीन है।
ऐसा आदमी एक वास्तविक काठ के कुन्दे से भी
गया-गुज़रा होता है हज़ार गुना।
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(7 Mar 2024)
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