...
ज़माने की हवा
वह थोड़े ज़िद्दी किस्म के
उसूलपरस्त इंसान थे।
एक दिन एक मशहूर ब्लॉगर युवा कवि को
फटकारते हुए बोले, "आप जिनके
शागिर्द हुआ करते थे वह ताज़िन्दगी
जिन कलावादी मठाधीशों के ख़िलाफ़ बोलते रहे,
आज आप उन्हीं की पूँछ में
कंघी कर रहे हैं।"
मैंने धीमी आवाज़ में एतराज़ जाहिर किया,
"गोकि आप मुतमइन हैं कि आज भी
वह होते तो वैसे ही होते
लेकिन आज के माहौल को देखते हुए
मुझे शक़ है कि वह भी शायद
ज़माने की हवा के हिसाब से
पाला बदल चुके होते।"
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(29 Feb 2024)
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