Saturday, February 24, 2024

काव्य संसार...


 

अक्सर मैं किसी कवि की एक या दो कविता की जगह उसके काव्य संसार के पूरे फलक को, या कम से कम उसके बड़े हिस्से को देखने के बाद ही उसके बारे में अपनी राय बनाती हूँ। 

अगर कोई कवि पिछले कम से कम दस वर्षों से कविता लिख रहा है और उसके कविता संसार में कहीं भी, कहीं भी मुस्लिम समुदाय पर क़ायम आतंक राज की और राजकीय आतंकवाद की और सेना-पुलिस-अर्द्धसैनिक बलों द्वारा देश के विभिन्न कोनों में की जाने वाली नृशंस हत्याओं की परछाईं या अनुगूँज तक नहीं है, अगर उस कवि के कविता संसार में हाथरस, उन्नाव और जम्मू की चीख़ें नहीं हैं, मुजफ्फरनगर और दिल्ली के दु:स्वप्न नहीं हैं, बिल्कीस बानो और आसिफ़ा नहीं हैं, 370 का मसला और कश्मीर से लेकर मणिपुर  तक का गहरा ख़ूनी अँधेरा नहीं है, तबरेज़, जुनैद, अख़लाक़ जैसे दर्ज़नों का पीछा करती ख़ून की प्यासी वहशी, उन्मादी भीड़ नहीं है,  सीएए-एनआईए और कोरोना काल के जनसंहार नहीं हैं, राम मन्दिर के बाद काशी-मथुरा को हासिल करने की उन्मादी हुंकारें नहीं हैं, अगर उस कवि की कविता की छाती पर रथयात्रा, बाबरी मस्जिद तोड़े जाने और गुजरात-2002 की यादें भीषण दु:स्वप्नों की तरह सवार नहीं हैं, अगर सत्ता की हर "क़ानूनी "-ग़ैरकानूनी कदमों के पीछे, उसकी सुगठित, नफ़ीस, अति कलात्मक, प्रेमपगी कविता को ख़ूनी फ़ौज़ी बूटों की धमक नहीं सुनाई पड़ती, अगर उस कवि को आज फ़िलिस्तीन में जारी जायनिस्ट क़त्लेआम से कुछ भी लेना-देना नहीं, तो वह कवि  नहीं, एक ख़तरनाक बहुरूपिया है। प्रेम, प्रकृति और मनुष्यता के बारे में उसके सारे गीत नक़ली हैं, अभ्यास से अर्जित शब्दों का खेला है। ऐसे कवि जो एकांत कला-साधक का नाट्य रचते हैं, वे व्यग्रता से ताक़तवर लोगों के निमंत्रण का इन्तज़ार करते रहते हैं। 

ऐसे कवि उन बुद्धिजीवियों से सौगुना अधिक घिनौने होते हैं जिनकी चर्चा ओतो रेने कस्तीय्यो ने अपनी मशहूर कविता 'अराजनीतिक बुद्धिजीवी' में की है। 

अगर मेरा कोई प्रिय कवि दोस्त ऐसे किसी कवि से, अनजाने ही, न पहचान पाने के कारण, हाथ मिलाकर मेरे घर आयेगा तो महान कामरेड कवि नाज़िम हिकमत की सलाह पर अमल करते हुए मैं डिटॉल मिले पानी से सात बार उसके हाथ धुलवाऊँगी और फिर अपना सबसे अच्छा कुर्ता फाड़कर उसे हाथ पोंछने के लिए दूँगी। 

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(24 Feb 2024)


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