इतिहास का आख्यान
इतिहास सफलता के सीधे-सपाट राजमार्ग से होकर कभी भी सफ़र नहीं करता। चाहे तुमने जितने भी श्रम और अनुभव से एक लंबी यात्रा में कुछ दूरियाँ नाप ली हों, सफलता का हर मुकाम बीच का एक पड़ाव होता है जो अगले संकट का पूर्वसंकेत देता है।
हमेशा तात्कालिक सफलताओं के जश्न में डूबे लोग अक्सर यह जान नहीं पाते कि अगले ही मोड़ पर कौन सी दुर्निवार, या अप्रत्याशित विपत्ति पूरी तैयारी के साथ उनके लश्कर पर हमले के लिए घात लगाये बैठी है।
क्रांति के विज्ञान के ग्रंथों के अधिकतर अध्यवसायी अध्येता अपनी गुमटियों में बैठे हुए कुछ नयी समस्याओं के ताले अनगढ़ या पुरानी जंग लगी चाबियों से खोलने की निष्फल कोशिश करते रहते हैं और बेशक़ इस दौरान कई बार वे नयी चीज़ों पर सोचने में जाने-अनजाने कुछ मदद भी कर देते हैं। पर दर्शनशास्त्र और समाज विज्ञान के प्रोफे़सर बस बाल की खाल निकालते हैं और हमें अमूर्त अकर्मकता से मोहाविष्ट करते हैं या फिर वे ऐसे कर्तव्यनिष्ठ भाष्यकार होते हैं जो इतिहास को उसी पुराने राजपथ पर चलने की नसीहत देते रहते हैं जैसे कोई बूढ़ा भिक्षु बचपन से अभ्यास किया हुआ कोई अबूझ मंत्र दुहराता हुआ घण्टा डोलाता रहता है।
पराजय के दिनों में ऐसा भी ख़ूब होता है कि अधिकतर बूढ़े क्रान्तियोद्धा अतीत को अपना अंतिम शरण्य बना लेते हैं और पुरानी रणनीतियों से नयी लड़ाइयाँ लड़ने का हठ ठाने रहते हैं।
और यह भी सच है कि बहुत कुछ खोकर ही हम समझ पाते हैं कि समय एक विस्तृत, बीहड़, बहुरूपा भूदृश्यों से भरा रणक्षेत्र है जिसमें अतिआत्मविश्वासी, अधैर्यवान योद्धाओं के खो जाने का एक लम्बा सिलसिला रहा है जो अक्सर इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं पाया जाता।
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(डायरी का एक इन्दराज, सितम्बर 2021 का एक दिन, बीमारी के बिस्तर से)
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