लेकिन यह स्थिति सत्तासीन फ़ासिस्टों की बदहवासी को भी दिखला रही है। सारे धर्मोन्मादी और शॉवनिस्ट प्रचार के बावजूद, गोदी मीडिया के पत्तलकारों और सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी के भरपूर इस्तेमाल के बावजूद, हवा का रुख हिन्दुत्ववादियों को अपने पक्ष में पलटता नज़र नहीं आ रहा है। अब तो बस अगले चुनावों में मनीपावर के बूते हॉर्स ट्रेडिंग और ईवीएम के जादू पर ही भरोसा है, लेकिन समस्या यह है कि ईवीएम का घपला भी हरजगह नहीं हो सकता।
बुर्जुआ जनवाद जितना रस्मी होता जायेगा और फासिस्ट तानाशाही जितनी नंगी होती जायेगी, सतह के नीचे जनाक्रोश का बारूद उतना ही अधिक इकट्ठा होता जायेगा।
माना कि प्रतिक्रिया और विपर्यय के इस अंधकार युग में सबकुछ इतनी जल्दी और इतनी आसानी से बदलने वाला नहीं है। यह लंबी लड़ाई है। लेकिन ठहराव की बर्फ़ पिघलने और जनसंघर्षों के एक नये चक्र के पूर्व संकेत मिलने लगे हैं -- पूरी दुनिया में भी और अपने देश में भी।
(4 Nov 2023)

No comments:
Post a Comment