Saturday, November 04, 2023

 अब यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ हो चुकी है कि सोशल मीडिया के लगभग हर मंच का एल्गोरिदम पूरी तरह वैसे ही काम कर रहा है जैसे केन्द्र की सरकार चाहती है। लेकिन पोस्ट्स की रीच चाहे जितनी कम की जाये, उनका एकदम से ब्लैकआउट नहीं किया जा सकता। इसलिए इन मंचों पर प्रायोजित धार्मिक कट्टरपंथी नफ़रत प्रचारों, अश्लील फूहड़ रील्स और वीडियोज़ तथा अफ़वाहों एवं झूठ से भरे कथित खबरिया चैनलों का घटाटोप रच दिया गया है। भाजपा के भाड़े के टट्टू और उनकी ह्वाट्सअप यूनिवर्सिटी दिनरात ज़हर उगल रही है। 

लेकिन यह स्थिति सत्तासीन फ़ासिस्टों की बदहवासी को भी दिखला रही है। सारे धर्मोन्मादी और शॉवनिस्ट प्रचार के बावजूद, गोदी मीडिया के पत्तलकारों और सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी के भरपूर इस्तेमाल के बावजूद, हवा का रुख हिन्दुत्ववादियों को अपने पक्ष में पलटता नज़र नहीं आ रहा है। अब तो बस अगले चुनावों में मनीपावर के बूते हॉर्स ट्रेडिंग और ईवीएम के जादू पर ही भरोसा है, लेकिन समस्या यह है कि ईवीएम का घपला भी हरजगह नहीं हो सकता। 

बुर्जुआ जनवाद जितना रस्मी होता जायेगा और फासिस्ट तानाशाही जितनी नंगी होती जायेगी, सतह के नीचे जनाक्रोश का बारूद उतना ही अधिक इकट्ठा होता जायेगा। 

माना कि प्रतिक्रिया और विपर्यय के इस अंधकार युग में सबकुछ इतनी जल्दी और इतनी आसानी से बदलने वाला नहीं है। यह लंबी लड़ाई है। लेकिन ठहराव की बर्फ़ पिघलने और जनसंघर्षों के एक नये चक्र के पूर्व संकेत मिलने लगे हैं -- पूरी दुनिया में भी और अपने देश में भी।

(4 Nov 2023)

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