Thursday, November 16, 2023

(शैतानियाँ, बुरा मानने के लिए)


कालजयी का कहर
आजकल इतना सारा कालजयी लेखन हो रहा है कि बार-बार पराजित काल ससुरा कहीं मुँह छिपाकर जा बैठा है और सारी घड़ियों की सुइयाँ रुक गयी हैं। 
मेरा सुझाव यह है कि इसके बाद चौपालजयी से लेकर त्रैलोक्यजयी तक, साहित्य की श्रेणियाँ निर्धारित होनी चाहिए और उनके अलग-अलग साहित्य महोत्सव होने चाहिए। 
बहरहाल, अभी तो कालजयी का काल चल रहा है। 
और भी इतनी सारी कालजयी चीज़ें हो रही हैं कि पूछिए मत! कल गली के नुक्कड़ पर पानी बताशे का ठेला लगाने वाला ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगा रहा था, "खा लो, खा लो, बिट्टू के कालजयी पानी बताशे!"
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(शैतानियाँ, बुरा मानने के लिए)

(22 Nov 2023)

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किस्सा एक और कवि द्वारा भगा दिये जाने का ! 

अपनी सद्यःप्रकाशित संग्रह का एक पन्ना खोलकर उन्होंने मुझे थमा दिया, "और इस कविता में तो मैंने अपना दिल उड़ेल कर रख दिया है!"

"तब तो आपका दिल बड़ा सतही और बनावटी है!" पढ़कर मैंने कहा। 

उन्होंने फ़ौरन किताब मेरे हाथ से छीन ली और कहा, "गेट आउट!"

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(शैतानियाँ, बुरा मानने के लिए)

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जब एक बड़े कवि ने मुझे भगा दिया! 

बड़े कवि थे। अबतक की  बातचीत से वह काफ़ी चिढ़ चुके थे। व्यंग्यात्मक अंदाज़ में पूछा, "अच्छा आप ही बताइए, यह प्रतिबद्धता क्या होती है!"

मैंने कहा, "यह एक विलुप्तप्राय पक्षी है, जो अब भी कभी-कभी अलास्का और साइबेरिया के सबसे दुर्गम सुदूर इलाकों में और उत्तरी ध्रुव के पास आर्कटिक के इलाके में दिख जाता है।"

उन्होंने कहा, "आप जा सकती हैं!"

मैंने पूछा, "कहाँ? अलास्का ? या साइबेरिया?"

वह बोले, "नहीं, मेरा मतलब यहाँ से जाइए, चाहे अपने घर जाइए चाहे जहन्नुम में!"

और मैं उनके कूचे से निकल आयी । 

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(शैतानियाँ, बुरा मानने के लिए)

(16 Nov 2023)

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