Wednesday, November 15, 2023

फ़ासिज़्म/नात्सिज़्म के इक्कीसवीं सदी के नये संस्करणों में से जायनवाद भी एक प्रमुख प्रवृत्ति है।


 फ़ासिज़्म/नात्सिज़्म के इक्कीसवीं सदी के नये संस्करणों में से जायनवाद भी एक प्रमुख प्रवृत्ति है। 

इन नये नस्लवादी फ़ासिस्टों के पीछे अमेरिका और पश्चिमी साम्राज्यवाद की पूरी ताक़त खड़ी है। अरब जनसमुदाय के सम्भावित विद्रोहों से हमेशा भयाक्रांत रहने वाले अरब देशों के शासक शेख, शाह और अमेरिकी गोद में बैठे अन्य बुर्जुआ शासक ग़ज़ा में जारी जनसंहार के विरोध में ज़ुबानी जमाख़र्च चाहे जितना भी करें, इस्राइल से उनका छुपा हुआ याराना है। बल्कि सच तो यह है कि उन्हें सबसे बड़ा डर यह है कि फिलिस्तीनी अगर कभी अपनी आज़ादी की जंग में कामयाब हो गये तो समूचे अरब क्षेत्र में साम्राज्यवाद समर्थित महाभ्रष्ट निरंकुश सत्ताओं के विरुद्ध अवामी बग़ावत का तूफ़ान उठ खड़ा होगा। फिलिस्तीनी अवाम की लड़ाई कोई यहूदियों मुसलमानों के बीच का धर्मयुद्ध नहीं है। यह 75 वर्षों से जारी एक जनमुक्ति संघर्ष है। 

समूची दुनिया की पूँजीवादी मीडिया के दुष्प्रचारों और सच को छुपाने की घिनौनी कोशिशों के बावजूद, एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका ही नहीं, बल्कि यूरोप और अमेरिका के सभी बड़े शहरों की सड़कों पर लाखों की तादाद में इंसाफ़पसंद लोगों के सैलाब पिछले एक माह से लगातार उमड़ रहे हैं।

 नेतन्याहू अगर ग़ज़ा में अपने नस्ली सफाया अभियान में सफल भी हो जायेगा, तो भी लम्बे दौर में ज़ायनवादी बर्बर फ़ासिस्टों और उसके साम्राज्यवादी आकाओं को इसकी मँहगी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। 

फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष जारी रहेगा और विद्रोह की लहर जंगल की आग की तरह पूरे मध्यपूर्व में फैल जायेगी। यही नहीं, आने वाले दिनों में साम्राज्यवाद-पूँजीवाद विरोध का ज्वार एक बार फिर नये संवेग के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गतिमान हो जायेगा। 

अगर प्रतिदिन हत्याओं के हिसाब से तुलना की जाये तो नेतन्याहू और ज़ायनवादी गिरोह हिटलर और उसके नात्सी गिरोह से भी आगे है। नीचे दी गयी तालिका (ये आँकड़े हफ़्ता भर पुराने हैं) से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है। नेतन्याहू की दूरगामी योजना पूरे फिलिस्तीन में बड़े पैमाने पर जनसंहार और शेष बची आबादी को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर करने की है। लेकिन हिटलर की तरह उसके मंसूबे भी क़ामयाब नहीं होंगे।

 जायनवादियों के सभी सरगना कुत्तों की मौत मरेंगे, मुसोलिनी और हिटलर से भी बदतर मौत। और सभी जायनवादी गुण्डे साम्राज्यवादी देशों में शरण लेकर बिलों में छुपकर ज़िन्दगी बितायेंगे। और जो अमनपसंद यहूदी आबादी है वह एक दिन आज़ाद सेक्युलर फिलिस्तीनी मुल्क़ में मुसलमानों के साथ, समान अधिकार वाले नागरिकों की तरह अमन-चैन की ज़िन्दगी जियेगी। फिलिस्तीनी प्रश्न का यही न्यायपूर्ण, तर्कसंगत समाधान है। इस मुकाम तक पहुँचने में अभी देर लगेगी, लेकिन यह होकर रहेगा और इस प्रक्रिया के मुकम्मल होने तक समूचे अरब क्षेत्र का स्वरूप भी बदल जायेगा क्योंकि फिलिस्तीनी प्रश्न समूचे मध्यपूर्व के अन्तरविरोधों का संधिबिन्दु है, उनकी केन्द्रीकृत गाँठ है। 

इस सदी का उत्तरार्द्ध शुरू होते-होते शायद, मध्यपूर्व, अफ्रीका और लातिन अमेरिका से लेकर एशिया के कुछ खित्तों तक बहुत कुछ उलटफेर होने वाला है। देखते जाइए! प्रतिक्रिया और उलटाव की बर्फ़बारी में इतिहास बस एक लम्बी शीतनिद्रा में चला गया है, उसकी धड़कन थोड़े न रुक गयी है! 

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(15 Nov 2023)


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