अमेज़न प्राइम पर प्रदर्शित 'दहाड़' वेब सीरीज़ एक सामान्य क्राइम थ्रिलर कॉप ड्रामा है हालाँकि इसकी एक ख़ास बात यह है कि इसमें मुख्य कथा के साथ-साथ हमारे सामाजिक ताने-बाने में गुँथे-बुने जाति के ज़हर और मर्दवाद की दमघोंटू सड़ांध को काफ़ी हद तक प्रामाणिक और प्रभावी ढंग से दिखाया गया है। यहाँ मेरा मक़सद इस वेब सीरीज़ की समीक्षा लिखना नहीं है। इसमें दो बातें मुझे दिलचस्प लगीं और बस उन्हीं की चर्चा करना चाहती हूँ।
इसमें 29 लड़कियों को प्रेमजाल में फांँसकर उनकी हत्या करने वाला जो साइको टाइप अपराधी चरित्र है वह दुनिया की निगाहों में एक निहायत शरीफ़ और सीधा-सादा इंसान है। वह लड़कियों के एक कालेज में हिन्दी का प्रोफेसर हैं और कविताओं की बहुत सुन्दर व्याख्या करता है। रोमानी कविताओं की उसकी व्याख्या पर तो लड़कियांँ एकदम मुग्ध हो जाती हैं। यह देखते हुए मुझे हिन्दी के प्रोफेसरों के बारे में कई लड़कियों द्वारा सुनाये गये अनुभव याद आ रहे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी वाले वो "प्रगतिशील-जनवादी" प्रोफेसर साहब भी याद आ रहे थे जो कुछ वर्षों पहले अपनी एक शोध-छात्रा का यौन-उत्पीड़न करने के लिए काफ़ी चर्चा में आ गये थे और जिन्हें अंततः इस बवाल से छुटकारा पाने के लिए नौकरी से इस्तीफा भी देना पड़ा था।
लेकिन सबसे मज़ेदार दृश्य वह था जहाँ हत्यारा अपने एक षड्यंत्र में लगा हुआ था और पृष्ठभूमि में हत्यारे की ही आवाज़ में बद्रीनारायण की कविता 'प्रेमपत्र' का पाठ चल रहा था। जाने-अनजाने निर्देशक ने ऐसा करके हमारे समय का एक महत्वपूर्ण रूपक रच दिया था। हत्यारा 'प्रेमपत्र' कविता पढ़ते हुए प्रेम (के छल) को हत्या के अंजाम तक पहुँचाने में जुटा हुआ है। है न दिलचस्प बात! निर्देशक या तो बहुत नासमझ है या बहुत ही समझदार! क्या वह 'प्रेमपत्र' कविता की अंतर्वस्तु और पाखंड पर कमेंट करना चाहता है, या अनजाने ही ऐसा कर बैठा है? या, क्या वह बद्रीनारायण की वर्तमान राजनीतिक अवस्थिति पर कमेंट करना चाहता है, या अनजाने ही ऐसा कर बैठा है?
'प्रेमपत्र' का कवि आजकल फ़ासिस्ट राजनीति का पक्ष लेकर एक आत्मिक-बौद्धिक सीरियल किलर की तरह सभी मानवीय मूल्यों की एक-एक करके हत्या ही तो कर रहा है!
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