दो छोटी कविताएँ
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पसीना और आँसू
धरती से लिए गये नमक को
पसीने में बदलकर वे देते हैं
दुनिया को जीवन का उपहार।
और जो नमक जज़्ब होता है
आँसुओं की शक़्ल में
उनके ख़ून में,
उसमें इतनी नाभिकीय ऊर्जा
संचित होती है जो अन्याय की
सारी ऐतिहासिक किलेबंदियों को
अपने विस्फोट से ध्वस्त कर सकती है।
और उसके बाद भी इतनी ऊर्जा
बची रहेगी जो समूची धरती को
रोशनी और गर्मी से भर देने के लिए
काफ़ी होगी।
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फ़ैसलाकुन होना
हताशा के साथ लोग कहते हैं,
"ऐसा कबतक चलता रहेगा!"
और चीज़ें वैसे ही चलती रहती हैं।
एक दिन वे कहते हैं फ़ैसलाकुन ढंग से,
"ऐसे तो नहीं चलेगा!"
और चीज़ों का बदलना तय हो जाता है।
सवाल सिर्फ़ यह है कि
सिर्फ़ कुछ लोग भी
फ़ैसलाकुन ढंग से सोचना कब शुरू करेंगे
और फिर तमाम आम लोगों को
चीज़ों को समझने में और
फ़ैसले तक पहुँचने में मदद
कितने असरदार तरीके से करेंगे!
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1 JUN 2023


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