Friday, December 23, 2022


अगर मुझे कविताएँ छपाने के लिए  पटवारी या ब्लॉक प्रमुख टाइप, या बनिए की खाताबही सम्हालने वाले मुंशी टाइप किसी  मतिमंद सम्पादक से निहोरा करना पड़ेगा, या किसी ठग-गिरहकट प्रकाशक या किसी दरियागंज के दल्ले या किसी सेठ प्रकाशक के परिवार के बच्चों के "रामूकाका" की लल्लोचप्पो करनी होगी, या समीक्षा या किताब का ब्लर्ब लिखवाने के लिए किसी मठाधीश के तलवे सहलाने होंगे, या प्रसिद्धि के शिखरों तक चढ़ने के लिए  गुण्डों, राजनेताओं, दल्लों  और संघी बौद्धिकों के साथ मंच शेयर करना होगा, या दिल्ली, भोपाल, वर्धा, रायपुर, नागपुर की तीर्थयात्रा करनी होगी, या किसी लिट फेस्ट में जाकर नाचना-गाना और बजाना होगा, या रज़ा फाउंडेशन और सरकार व सेठों की अकादमियों की दर पर जाकर मत्था टेकना होगा, या फासिस्टों के सेवकों के ख़ूनी हाथों से वजीफा, ईनाम लेना होगा; तो ईमान कसम! उससे पहले कलम तोड़ दूँगी, कविताओं की डायरी जला दूँगी और सब्ज़ी का ठेला लगाकर आलू-टमाटर बेचना शुरू कर दूँगी ! ईमान बेचने से लाख गुना बेहतर है सब्ज़ी बेचना ! ज़मीर का सौदा करने से बेहतर है  गंदगी पर खँखार कर थूक देना और कला-साहित्य के ऐन्द्रजालिक मायाजगत से बहिर्गमन कर जाना ! 

हम अगर वाक़ई जनता के आदमी हैं तो कोई ग़ैर-उसूली काम क्यों करेंगे, गू को हलवा क्यों कहेंगे, बेशर्म मौक़ापरस्तों की पंगत में  क्यों बैठेंगे ? दिल से, पूरे कमिटमेंट के साथ लिखते हैं, अपने लोगों के साथ जीते हुए I हमारी शान हमारे लिए सर्वोपरि है I हम लिखते हैं और जहाँ तक संभव है उसे अपने उद्यम और अपने वैकल्पिक माध्यमों से लोगों तक पहुँचाते हैं I जिनको पढ़ना होगा पढ़ेंगे, जिनको नहीं पढ़ना होगा नहीं पढ़ेंगे I यशस्वी या अमर होने के लिए मरे नहीं जा रहे हैं I अगर कोई छापने को माँगता है तो रचनाएँ देते हैं, और वह भी सबको नहीं I जानते-बूझते किसी धंधेबाज को तो कतई नहीं I सच को बुलंद आवाज़ में कहना और उसकी हर क़ीमत चुकाने के लिए तैयार रहना हमारे तौरे-ज़िन्दगी का हिस्सा है I अगर बुर्जुआ जनवाद का रहा-सहा स्पेस भी समाप्त हो जायेगा तो भी अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के रास्ते निकाल लेंगे और अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठायेंगे I

साहित्यिक और बौद्धिक जगत के ठगों,  बदमाशों, लफंगों, बेईमानों, मौक़ापरस्तों की धुलाई करते रहने में, और हत्यारे फ़ासिस्टों तक के साथ सेज सजाकर बख्शीश लेने वाले सफ़ेदपोश दुश्चरित्र कलावंतों के नक़ाब नोचते रहने में फिर हमें किस बात का डर ? कैसी झिझक ? कैसा लिहाज़ ?  क्यों साथियो, ठीक बात है कि नहीं!

(23 Dec 2022)

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