Sunday, November 13, 2022

नाज़ुकमिज़ाज नेकदिल इन्साफ़पसन्द शहरी का गीत

 

नाज़ुकमिज़ाज नेकदिल इन्साफ़पसन्द शहरी का गीत

हम बेहद सलीक़ेदार, तहज़ीबयाफ़्ता शहरी हैं 

तहीमग्ज़ इंसानों से दूर रहते हैं 

मगन रहते हैं अदबो-हुनर और इल्मो-फ़लसफ़ा की दुनिया में !

सेहत थोड़ी ख़राब रहा करती है 

एलर्जी, गैस-बदहज़मी और बवासीर की वजह से 

मगर फिर भी हर उस तहरीक़ में किसी भी सूरत में 

अपनी हाज़िरी दर्ज करा ही आते हैं जो 

इंसाफ़ और हक़ के लिए हो !

मगर हाँ, हम इस बात के पुरज़ोर क़ायल हैं कि 

क़ायदे-क़ानून का ख़याल रखा जाना चाहिए और 

तहम्मुल बरक़रार रहना चाहिए !

हम नाप-तोलकर जीते और बोलते हैं 

मुँह खोलने से पहले अलफ़ाज़ की क़ता-बुरीद करते हैं I

न जाने कितने ऑनलाइन पिटीशंस पर दस्तख़त किये होंगे 

कितने धरनों पर बैठे होंगे, 

कितने जुलूसों में शामिल हुए होंगे,

हमें तो याद भी नहीं I 

हाँ, आज भी अगर बोल्शेविक इंक़िलाब जैसे 

इंक़िलाब की और नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ अवामी बग़ावत की

बात करने वाला, मश्कूक इरादों वाला कोई 

नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त अहमक़ नौजवान मिल जाता है तो 

उसकी बातों में हमें बारूद और दहशतगर्दी की 

मिली-जुली बू आने लगती है और हम नाक पर रूमाल रखकर 

थोड़ा परे हटकर खड़े हो जाते हैं !

ऐसे लोगों पर रहम खाते हुए सोचते हैं कि 

जब नौजवानी आयेगी ढलान पर, तो अपने-आप 

होश ठिकाने आ जाएगा बच्चू का !

अपना तो भई, ये ख़याल है कि 

बेशक चीज़ें बदलनी चाहिए, मगर 

रुख़ से नक़ाब सरकने की तरह, आहिस्ता-आहिस्ता 

सलीक़े और क़रीने के साथ, शाइस्तगी और ख़ूबसूरती के साथ

जैसे काग़ज़ पर कोई रुबाई उतर रही हो !

अब देखिये, हर शहरी की ज़िन्दगी की होती हैं 

कुछ मजबूरियाँ जो तय करती हैं उसकी 

सरगर्मियों की हदें !

हम तो कहते हैं आज के इन पुरजोश, हौसलामंद,

बेज़ार-बेक़रार नौजवानों से कि सबका 

अपना-अपना मोर्चा होता है !

मुझे तसल्ली से अदब और इल्मो-फ़लसफ़ा की दुनिया में 

कुछ ऊँचा मुक़ाम हासिल करने दो अवाम की ख़ातिर और 

इंक़िलाब की ख़ातिर और तुमलोग अपने मोर्चे पर 

डटे रहो, हाँ मगर क़ायदे-क़ानून का ख़याल रखते हुए,

दस्तूरे-असासी के दायरे में रहते हुए ! 

ज़िंदगी पर जबतक नहीं आयेगा कोई ख़तरा,

जबतक उठाना नहीं पड़ेगा कोई बड़ा जोखिम, 

हमें हमेशा इंसाफ़ के पक्ष में खड़ा पायेगी ये दुनिया !

हम बेहद नेक इंसाफ़पसंद शहरी हैं 

हाँ उस सूरत की बात कुछ अलग है, गर

नाइंसाफ़ी करने वाला ख़तरनाक हदों तक खूँख़्वार हो

या फिर

वो नाइंसाफ़ी मेरे ही हाथों हो गयी हो 

या नाइंसाफ़ी करने वालों से अपना कोई 

राबता हो, या कोई काम निकलने वाला हो !

*

(13 Nov 2022)


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