Monday, August 08, 2022

बुर्जुआ संसदीय व्यवस्था का अंदरूनी द्वंद्व (अंतरविरोध) बुर्जुआ सत्ता पक्ष और बुर्जुआ प्रतिपक्ष के बीच होता है।


बुर्जुआ संसदीय व्यवस्था का अंदरूनी द्वंद्व (अंतरविरोध) बुर्जुआ सत्ता पक्ष और बुर्जुआ प्रतिपक्ष के बीच होता है।

बुर्जुआ सत्तापक्ष और सभी प्रकार के सामाजिक जनवादियों, संशोधनवादियों, पेटी-बुर्जुआ पॉपुलिस्टों आदि को शामिल करके बने बुर्जुआ विरोध-पक्ष का द्वंद्व समूची बुर्जुआ राजनीति का अंदरूनी द्वंद्व होता है।

पूँजीवाद की समूची सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था का अंदरूनी द्वंद्व समस्त बुर्जुआ राजनीतिक शक्तियों और सभी मेहनतकश वर्गों की नुमाइंदगी करनेवाली राजनीतिक शक्तियों के बीच होता है। समस्त बुर्जुआ राजनीतिक शक्तियों में अगुआ भूमिका बड़े और इजारेदार बुर्जुआ वर्ग की नुमाइंदगी करने वाली राजनीतिक पार्टी की होती है। आज के साम्राज्यवादी युग में भारत जैसे देशों में यह या तो कोई निरंकुश दमनकारी, बोनापार्टिस्ट टाइप बुर्जुआ पार्टी हो सकती है, या कोई फ़ासिस्ट पार्टी हो सकती है। तमाम सामाजिक जनवादी और संशोधनवादी भी इसी शिविर के घटक होते हैं। मेहनतकश वर्गों की नुमाइंदगी करनेवाली राजनीतिक शक्तियों में हिरावल या नेतृत्वकारी भूमिका सर्वहारा वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी की होती है। यह राजनीतिक अंतरविरोध पूँजीवाद के बुनियादी अंतरविरोध -- श्रम और पूँजी के बीच के अंतरविरोध की ही अभिव्यक्ति है जो कालान्तर में सर्वहारा वर्ग और पूँजीपति वर्ग के वर्गीय अंतरविरोध के रूप में प्रधान अंतरविरोध बन जाता है। यही अंदरूनी द्वंद्व परिमाणात्मक विकास करते हुए एक ख़ास मंज़िल पर गुणात्मक छलांग लेता है और पूँजीवाद का निषेध करते हुए समाजवाद अस्तित्व में आ जाता है।

सभी सामाजिक जनवादी और संशोधनवादी अपने को पूँजीवादी सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था के अंदरूनी द्वंद्व में दूसरे पक्ष के रूप में, यानी बुर्जुआ व्यवस्था के विकल्प के रूप में पेश करते हैं, जबकि दरअसल वे पूँजीवादी राजनीति के अंदरूनी द्वंद्व में प्रतिपक्ष की भूमिका निभाते हैं।

उनका अस्तित्व बुर्जुआ जनवादी राजनीति की बुनियादी ज़रूरत है। इसीलिए कहा जाता है कि वे बुर्जुआ व्यवस्था की दूसरी सुरक्षा-पंक्ति होते हैं।

बीसवीं सदी में फ़ासिस्ट जब सत्ता में आये थे तो उन्होंने बुर्जुआ संविधान और बुर्जुआ जनवाद के सारे तामझाम को उठाकर कूड़ेदान के हवाले कर दिया। इससे दो बातें हुईं। एक तो जो अंदरूनी द्वंद्व बुर्जुआ संसदीय प्रणाली और बुर्जुआ जनवादी राजनीति के अंदरूनी द्वंद्व थे, उनकी मूल चालक शक्ति थे, उनका निर्मूलन हो गया और फ़ासिज़्म की ऐसी व्यवस्था अस्तित्व में आयी जो पूँजीपति वर्ग की नग्न-निरंकुश तानाशाही थी। दूसरे, संसदीय प्रणाली और पूँजीवादी जनवादी राजनीति के विघटन से सभी सामाजिक जनवादी, संशोधनवादी और  क्षुद्र बुर्जुआ दल अप्रासंगिक हो गये। अस्तित्व के इस संकट के चलते, पिछली शताब्दी में इनके भीतर फ़ासिज़्म के विरुद्ध जुझारू संघर्षों में भागीदारी की कुछ संभावना बची हुई थी, हालाँकि अमली तौर पर वे संघर्ष में बहुत कम ही उतरे।

आज स्थिति एकदम भिन्न है। इस सदी में जो भी फ़ासिस्ट या निरंकुश बुर्जुआ सत्ताएँ अस्तित्व में आ रही हैं, वे बुर्जुआ जनवाद की संस्थाओं को-- संविधान, संसदीय प्रणाली, न्याय व्यवस्था आदि को समाप्त नहीं कर रही हैं बल्कि उनके ढाँचे या खोल को बरकरार रखते हुए उन्हें पंगु और प्राणहीन बनाती जा रहीं हैं! यानी वे संशोधन वादियों, सामाजिक जनवादियों और बुर्जुआ लिबरलों के लिए खेल के मैदान को ही नष्ट नहीं कर रही हैं, बल्कि अपने बनाये प्ले ग्राउंड में अपने नियमों के हिसाब से खेलने को कह रहीं हैं! यानी संशोधनवादियों, सामाजिक जनवादियों और बुर्जुआ लिबरलों के सामने अस्तित्व का संकट नहीं है, उन्हें खेल के नये नियमों के हिसाब से 'जनवाद-जनवाद' का खेल खेलना है और सड़क से लेकर संसद तक प्रतीकात्मक विरोध की रस्म अदायगी करते रहना है! अब वे फ़ासिज़्म के विरुद्ध किसी क्रांतिकारी संघर्ष में सड़कों पर उतरने के लिए कोई संयुक्त मोर्चा बना ही नहीं सकते l अब वे फ़ासिज़्म विरोधी मोर्चे के नाम पर बस तरह-तरह की क्षेत्रीय और नामधारी राष्ट्रीय बुर्जुआ पार्टियों के रंग-बिरंगे, अस्थिर और 'अनप्रेडिक्टेबल' चरित्र वाले चुनावी मोर्चे ही बना सकते हैं l ऐसा करते हुए वे ज़्यादा से ज़्यादा निष्प्रभावी, नंगे, बेहया, बेशर्म, गलदोद और पतित होते जायेंगे, इतना जितना कि इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया! और आज के राजनीतिक परिदृश्य को देखिए तो लगता है कि ऐसा तेज़ी से होता भी जा रहा है! इसमें ज़रा भी आश्चर्य की बात नहीं कि हमारे अभिशप्त समय में राजनीति के अतिरिक्त बौद्धिक और साहित्यिक दुनिया में भी परले दरजे के बदमाश, मौक़ापरस्त, सत्ताकामी, मूर्ख अहंकारी, दरबारी, दुराचारी, पाखंडी, नौटंकीबाज़ छद्मवामियों, सामाजिक जनवादियों और बुर्जुआ लिबरलों ने कोहराम मचा रखा है!

(8 Aug 2022)

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