Saturday, August 20, 2022

धुरंधर विद्वान

कुछ दिनों पहले एक धुरंधर विद्वान मिले I बोले,'देखो, कुछ करना तभी चाहिए जब क़ामयाबी पक्की हो ! यूँ ही धूल में लट्ठ क्यों मारते रहें और अपना सुख-चैन भी हराम करें ! भगतसिंह के फाँसी चढ़ जाने से क्या मिला ? कम्युनिस्ट मूवमेंट में पहले लोगों ने इतनी कुर्बानियाँ दीं और आज देखो, आज के कम्युनिस्ट नेता क्या कर रहे हैं और मूवमेंट किसतरह तबाह हो चुका है !' 

मैंने धुरंधरजी को समझाने या उनसे बहस करने की कोई कोशिश नहीं की I मेरा ख़याल है कि नासमझ को समझाया जा सकता है और एक जेनुइनली निराश व्यक्ति से उम्मीद की बातें की जा सकती हैं, पर जो व्यक्ति अपनी कायरता और स्वार्थपरता को छुपाने के लिए तर्क गढ़ रहा हो, उससे कत्तई बहस की कोशिश नहीं करना चाहिए I उसे चुपचाप मुस्कुराते हुए थोड़ी देर देखना चाहिए और फिर हँसते हुए वहाँ से उठ जाना चाहिए !

फ़िलहाल जो लड़ते हुए असफल रहे, उसूलों की खातिर जिन लोगों ने हारी हुई लडाइयाँ लड़ीं और खुद गुमनामी के अँधेरे में खोकर आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाई, उन्हें मैं  महाकवि वाल्ट व्हिटमैन की इन पंक्तियों के साथ याद करती हूँ और सलामी देती हूँ :

'ढेरों सलाम उनको जो असफल हुए 

और उनको जिनके युद्ध-पोत समंदर में डूब गये

और उनको जो खुद सागर की गहराइयों में समा गये

और उन सभी सेनापतियों को जो युद्ध हार गये और सभी पराजित नायकों को 

और उन अनगिन अज्ञात नायकों को जो महानतम ज्ञात नायकों के बराबर हैं I'

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(20 Aug 2022)



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