मनुष्यता के पक्ष में चंद नक़ली और आडम्बरपूर्ण कविताएँ तो कायर, पाखण्डी, सत्ता के सामने झुकने वाले और फ़ासिस्टों से चुम्माचाटी करने वाले भी लिख देते हैं, भले ही शब्दों का यह कपट-प्रपंच लोगों के दिलों तक कभी न पहुँच पाये!
एक अमानुषिक समय में अपनी मनुष्यता को, समस्त मनुष्यता के पक्ष में निर्भीक-निर्द्वंद्व भाव से खड़ा होकर ही बचाया सकता है, उसके लिए वीरोचित संघर्ष करके ही बचाया जा सकता है! ऐसे ही समयों में लोगों की परीक्षा भी होती है और पहचान भी!
न्याय और मनुष्यता के लिए, संघर्ष करते हुए मरने के लिए जो हर क्षण तैयार रहता है, वही जीवन को छककर जीता है और सार्थक सृजन का ऐतिहासिक वरदान भी केवल उसी सर्जक और कलाकार को प्राप्त होता है।
बेशक़ प्रतिक्रान्ति के घनघोर अंधकारमय दिनों में ऐसे लोग बहुत कम पाये जाते हैं, लेकिन वही सच्चे मनुष्य होते हैं, सच्चे लेखक-कलाकार होते हैं, सच्चे अर्थों में 'जनता के आदमी' होते हैं!
बाकी तो बस कागद गोंजने वालों, रंगों की लीपापोती करने वालों, चंडूखाने में बैठकर ऊँची-ऊँची छोड़ने वालोंं और किसिम-किसिम की बौद्धिक और लोकलुभावन नौटंकी दिखला कर वाहवाही और ईनाम-वजीफी बटोरने वाले भाँड़-भड़ुक्कों की भीड़ होती है!
11 Aug 2021
No comments:
Post a Comment