बेइंतहा पसंद है मुझे
आती हुई रात के
झीने कुहासे को,
दरीचों को और सितारों को,
एक-एक करके आसमान में रौशन होते हुए देखना, और
गाढ़े धुँए की नदियों को ऊपर की ओर
सुस्ती से बहते हुए देखना ।
और फिर चाँद उगता है और उन्हें
चाँदी की रंगत दे देता है।
मैं देखूँगा बहारों, गर्मियों और
पतझड़ों को गुज़रते हुए आहिस्ता-आहिस्ता,
और जब बूढ़ी सर्दी शीशे से
अपना सूना चेहरा सटा देगी,
तो मैं सभी दरवाज़ों-खिड़कियों को बंद कर लूँगा,
परदों को खींचकर नीचे गिरा दूँगा
और मोमबत्ती की रोशनी से अपने
राजसी महलों की तामीर करूँगा ।
-- शार्ल बोद्लेयर (Les Fleurs du Mall)
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