Sunday, May 23, 2021

देश एक ऐतिहासिक दुष्काल से गुजर रहा है।


देश एक ऐतिहासिक दुष्काल से गुजर रहा है। यह सिर्फ़ एक महामारी नहीं, फ़ासिस्ट सत्ता द्वारा प्रायोजित नरसंहार है!  श्मशानों में शवों की कतारें, क़ब्रिस्तानों में जगह नहीं, नदियों किनारे रेत में दबी हज़ारों लाशें और शववाहिनी गंगा! रोज़ सोशल मीडिया पर किसी महत्वपूर्ण कवि-लेखक-विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता की मृत्यु की ख़बर पढ़ते-पढ़ते दिलो-दिमाग़ थकान और अवसाद से भर गया है!

ऐसे समय में किसी साहित्यिक पुरस्कार की घोषणा, लेखकों द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाना और फिर बधाइयों का ताँता ... ... क्या यह बेहद बेरहम और अश्लील सा नहीं लगता?

मैं जानती हूँ, बहुतों को नहीं लगता होगा, क्योंकि हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब एक ही समय में फेसबुक पर किसी के निधन पर शोक प्रकट करता हुआ, किसीको जन्मदिन या शादी की बधाई देता हुआ और फिर किसी चुटकुले पर ठहाके लगाता हुआ इंसान आगे बढ़ जाता है! यह मशीनीपन कितना बेरहमी भरा लगता है! ज़रा रुककर, साथ छोड़ जाने वाले अपने हमसफ़रों के बारे में सोचिए, आक्सीजन, बेड और दवाओं के अभाव में तड़प-तड़पकर मरने वाले लाखों लोगों और उनके बेसहारा हो गये परिवारों के बारे में सोचिए! क्या पुरस्कार लेने और देने वालों के दिमाग़ में थोड़ी देर को भी यह ख़याल नहीं आया? आना नहीं चाहिए? क्या ऐसी घोषणाओं, आयोजनों और बधाइयों के रेले को कुछ समय के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता? कर नहीं दिया जाना चाहिए? इससे क्या बिगड़ जायेगा? क्या यह बेमौसम का राग, विशेष तौर पर कवियों-लेखकों के लिए, कुछ अमानवीय सा नहीं लगता?

अब यह तर्क मत दीजिए कि जीवन तो हर हाल में चलता रहता है! अपने लोगों के शोक में चलता हुआ जीवन भी कुछ देर के लिए तो ठहर ही जाता है! और अभी लोगों पर मृत्यु और आपदाओं की बारिश जारी है! मैं यह नहीं कहती कि जीवन के सारे क्रिया-व्यापार इस दौर में रुके रहेंगे। लेकिन चिन्तन-मनन, लेखन, सैद्धांतिक बहसों और ज़मीनी राजनीतिक सरगर्मियों की निरंतरता एक चीज़ है और साहित्यिक जश्न और जलसे, पुरस्कार आदि लेना-देना और बधाइयाँ देना तथा सधन्यवाद उन्हें स्वीकार करना, ऐसी "महती उपलब्धियों" को सेलिब्रेट करना -- ये सब एकदम अलग बात है!

जानती हूँ, बहुतेरे लोग ऐसा सोचते हैं, पर बुरा बन जाने या अलग-थलग पड़ जाने के डर से कुछ बोलते नहीं! लेकिन जहाँतक मैं जानती हूँ डरना एक बुरी बात है! बिगाड़ के डर से ईमान की बात न करना अच्छी बात नहीं है!

23 May 2021

No comments:

Post a Comment