Monday, May 24, 2021

एक प्रति-ललित या अललित गद्य



एक प्रति-ललित या अललित गद्य 

अगर तुम लीक से हटकर चलते हो, 

अगर तुम खोज रहे हो रास्ता, 

या बना रहे हो कोई नयी राह,

तो रास्ते के सरायों में बैठे निठल्ले जुआड़ी,

शराबघरों के सामने की नालियों में लुढ़के शराबी,

परजीवी, भिखमंगी, अमानुषी क्षुद्रात्माएँ,

बौद्धिक मटरगश्ती करते लुच्चे-लफंगे,

बीहड़ यात्राओं से डरकर लौटी भगोड़ी दुरात्माएँ,

और मृत्यु के रौरव शोर में भी अखण्ड शान्ति का

आग्रह करते "सद्गृहस्थ चिन्तक"

तुम्हें कोसेंगे पानी पी-पीकर!

कुछ तुम्हें दुनिया के घृणिततम दुष्प्रचारों और अश्लीलतम गालियों से

 ढँक देंगे और कुछ तुम्हारे ऊपर तमाम 

आरोपों और तोहमतों की बरसात कर देंगे!

इनका बस इतना ही महत्व है जितना 

भिनभिन करती मक्खियों और भनभन करते मच्छरों का।

इससे अधिक महत्व इन्हें नहीं देना चाहिए!

लेकिन किसी भी अवैज्ञानिक, अतार्किक विचार पर,

किसी भी लोकरंजकतावादी, अनुभववादी, अवसरवादी,

छद्म-प्रगतिशील विचार पर, 

टूट पड़ना चाहिए तर्क और विज्ञान की पूरी शक्ति के साथ,

अधिकतम संभव खण्डन-मण्डनात्मक विवेक के साथ!

हर विचारधारात्मक आक्रमण का उत्तर 

दुगुनी शक्ति से किया गया प्रत्याक्रमण ही होता है!

विचारों की दुनिया में जो ग़लत का विरोध नहीं करता

वह या तो अल्पबुद्धि होता है, या दुर्बुद्धि,

या कोई कायर-बेईमान चमकते चिकने चेहरे वाला बुर्जुआ लिबरल,

जैसे कोई चर्बीदार, परमसंतुष्ट सूअर!

(इसे कोई ग़लती से कविता न समझ ले, अन्यथा इतनी कलाविहीन सपाटता से वह दुखी हो जायेगा! यह ललित गद्य भी नहीं है। आप इसे ललित बनने के प्रयास में विफल, अललित या प्रति-ललित गद्य की तरह पढ़ें।)

24 May 2021



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