पोंछ देती हूँ दुखों को
लालटेन के शीशे पर लगी
कालिख की तरह।
शोक की धुंध छँटती है
लेकिन रंग अनुपस्थित रहते हैं!
आश्वस्ति है फिर भी कि दृष्टि
बनी रहती है
काल-कराल की आँखों में
घूरती हुई, अभय!
22 May 2021
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