ग़ुस्सा जितना कम होगा, उसकी जगह उदासी लेती जायेगी।
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हर दुःख, हर अज़ाब के बाद ज़िन्दगी आदमी पर अपना एक राज़ खोल देती है।
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आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाते तो उम्र भर प्रोफ़ेसर ही रहता है, चाहे बाद में समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे!
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जो मुल्क़ जितना ग़ुर्बत-ज़दा होगा उतना ही आलू और मज़हब का चलन ज़्यादा होगा।
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