Wednesday, April 14, 2021

संगठित जनशक्ति...!


यह मानव वेश धारे महामायावी भीषण नरपिशाच है । साबरमती से लेकर गंगा के घाटों तक, सभी श्मशानों में घूम-घूमकर खोपड़ी के खप्पर में मानव-रक्त पीता रहा है। अब इसके साथ विकट नरभक्षी, रक्तपायी भूतों-प्रेतों की अनगिन टोलियाँ हैं। 

यह महापिशाच अब पूरे देश को श्मशान बना देना चाहता है। नरसंहारों से मन नहीं भरा तो  लोगों को भूख से और कोरोना महामारी के हालात में भूख और दुर्व्यवस्था से मार रहा है । साथ ही, इसके महाषड्यंत्रकारी दिमाग़ में नये नरसंहारों की विकराल योजनाएँ पल रही हैं। 

मौत का शिकार होने से बचे लोगों को यह श्मशान का कुत्ता और सियार, गिद्ध, चील और कौव्वा और लाशों पर रेंगने वाला कीड़ा बना देना चाहता है । सभी बौद्धिकों को शव-साधना करने वाले अघोरियों और तांत्रिकों में तब्दील कर देना चाहता है। 

अभी भी समय है। संगठित जनशक्ति ही मृत्यु के इन आराधकों को ठिकाने लगाकर जीवन के इन्द्रधनुषी वितान तले स्वप्न और सृजन का सरगम छेड़ सकती है। इसीलिए, जो जीवन और मनुष्यता के पक्ष में हैं, उन्हें मनुष्य के रूप में जीने के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए, मृत्यु-भय से मुक्त होकर, संगठित होकर सड़कों पर उतरना होगा। और कोई भी रास्ता नहीं है। जो फासिस्ट पिशाचों को समझा-बुझाकर, नैतिक दबाव बनाकर या चुनावों में हराकर, उन्हें सुधार देना चाहते हैं या उनसे मुक्ति का भ्रम पालते हैं, वे भेड़ियों को उपदेश देकर अहिंसक और शाकाहारी बना देने के भ्रम में जीने वाले राजनीतिक मूढ़ लोग हैं। या, यह भी हो सकता है कि भय और प्रलोभन ने उन्हें प्रेतों-पिशाचों का गुप्त सहयोगी बना दिया हो! इतिहास में ऐसा पहले हो चुका है। इसलिए यह सन्देह निराधार नहीं!

(13 Apr 2021)

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