Sunday, February 14, 2021

बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला की कँटीली शायरी

बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला की कँटीली शायरी 

.

वफ़ा  उसने  निभाई  डूबकर ताज़िन्दगी लेकिन 

जो ख़ुद से बेवफ़ाई की हिसाब उसका नहीं रक्खा I

*

कहा उसने,'चलो अब अजनबी बन जाँय हम दोनों'

लगी  वो सोचने  हैरान हो,   अबतक भला क्या थे !

*

परेशाँ हो परेशानी से जब वो दूर जाती थी 

नई दुश्वारियों में और गहरे डूब जाती थी !

*

कहा उसने, चलो हम चाँद के उस पार चलते हैं 

वो बोली, ओ मुए, औक़ात तो अपनी ज़रा देखो !

*

कहा उसने, अभी मैं फ़लसफ़ा पढ़ने में डूबा हूँ 

वो बोली, ज़िंदगी से इसक़दर मायूस क्यूँ कर हो !

*

जुर्म जो भी वो करता था, सफ़ाई उसकी देता था 

मुझे हालात ने ऐसा बनाया है, करूँ मैं क्या !

*

अपनी बातों के खंडन से हुए पजामे से बाहर 

नयी मूर्खताएँ फैलाने नंगे उठकर चले गए !


#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

(14 Feb 2021)

****


अदब की एकेडमी में बँटनी थी दाल

जूते सा मुँह लेके सब  आ गये 

*

अदबी इल्मो-हुनर भर गया है अपने इस भेजे में

मण्डी हाउस की मण्डी में मोल-तोल कर बेचेंगे 

*

अपने ज़मीर का नहीं हम करते मोल-तोल

हर आइटम का रेट यहाँ फ़िक्स्ड है जनाब 

*

हल्का था गोंद, ख़त कहीं रस्ते में गिर गया

ख़ाली लिफ़ाफ़ा चलके मेरे घर को आ गया 

*

लोग क़िस्तों में जिया करते हैं अपने मुल्क़ में

मरना भी आसां नहीं है, ज़हर की है राशनिंग

*

'जन्नत कैसे जाओगे', ये फ़िक़्र जताई मुल्ला ने

पीने वाला बोला,'हम तो जन्नत में ही रहते हैं'

*

गुज़रे हैं ज़िन्दगी में जब भी इम्तिहान से

पेपर को समझते रहे कि घण्टा बज गया

*

उन बातों में कुछ बात थी वो और बात थी

बेबात भी अब बात नहीं हुआ करे है

*

हर बात में होती थी कोई बात उन दिनों

अब रात में भी बात नहीं हुआ करे है

*

दर्द जब बीत-बीत जाते हैं

अपनी चीज़ों सी याद आते हैं

*

इन सुनसान वादियों में ऊँची आवाज़ में गाना है

एक ज़लज़ला लाने को बस इतनी हरक़त  काफ़ी है

*

कुछ जादू है कुछ तिलिस्म है कुछ किस्से कुछ गप्पें हैं

दुनिया को पागल करने को इनमें से कुछ काफ़ी हैं

*

ज़हर के मुक़ाबिल ये अश्आर हैं

कि सुनकर मरो या मरे सा जियो

*

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

(16 Feb 2021)


****


अपने ख़्वाबों को दफ़न कर पढ़ चुके थे फ़ातिहा

जिन्नात माज़ी के मगर फिर क्यूँ सताने आ गये

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

(29 Mar 2021)


****


सवालों में रहना ही बेहतर कहीं

जवाबों में कलई उतर जाती है!

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

****

सही सवालों का देते हैं हरदम ग़लत जवाब जनाब

और पूछे हैं अपनी पारी में हरदम ही ग़लत सवाल।

कैसे ग़लत सवालों का हम उनको देवें सही जवाब

गजब गावदी ऐसी सूरत में काटे हैं ख़ूब बवाल ।

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

5 June 2021

****

जलवा जो देखा फेसबुक पर उनकी कठदलीली का
अपनी समझदारी पर तरस खा-खा के रह गये।

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

6 June 2021

****

इतना बदले वो कि  पहले जैसे ही होते गये
जैसे-जैसे और बदले,  बद से बद्तर हो गये।

#बेगम_ज़लज़़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

6 June 2021

****

कभी मारी पलटी, कभी पलटा मुद्दा
फिर पूछा पलटके कि मुद्दा है क्या!

#बेगम_ज़लज़़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

6 June 2021

****

झूठ जो बोलते नफ़ासत से, सलीके से
तोड़ दो दाँत उनके बेअदब तरीके से।

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

7 June 2021

****

नास्टैल्जिया के मूड में चंद अशआर
क्यों न पहचानूँगी तुमको, इतने अरसा बाद भी
आशिकी के भूत का चढ़ना-उतरना याद है।
चप्पल लेकर हाथ में दौड़ा के पीटा था जहाँ
शहर की वो सड़क, वो मंज़र अभी तक याद है।

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

8 June 2021

****

दोष आईने का क्या है, आप ही कहिए
मुखौटा बिन उतारे शक़्ल कैसे देख पायेंगे!

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

2 July 2021

****

टशन-ए-इश्क़ के किस्से तो सुनाऊँगी मैं सौ साल के बाद
अभू तो और करूँ और करूँ और करूँ हूँ।
.
#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

3 July 2021

****


बहुत आइडिया हैं भेजे में दुनिया बदलने की ख़ातिर
अभी-अभी घर-बार बसा है, अब जाकर बतलाऊँगी।
कुलकवादियों के दिमाग़ हैं जुते हुए खेतों जैसे
तहज़ीबी केसर की क्यारी इनमें अजब बनाऊँगी।
भरूँ उड़ानें मैं कल्चर के आसमान में वल्चर-सा
क़ौमवादियों को कविता की अब तमीज़ सिखलाऊँगी।
दरियादिली तो देखो लोगो मुझ पगली दीवानी की
इतना सबकुछ करके भी अहसान नहीं जतलाऊँगी।

(सफ़ेदा बहिन जी के दिल के अरमान, बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला के अल्फ़ाज़)

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

4 July 2021

****


(चन्द हज़रात की फ़रमाइश थी कि ज़लज़ला बेगम को अब कुछ ग़ज़लें भी कहनी चाहिए। तो लीजिए, पेश है छोटे बहर की एक मुकफ़्फ़ा या ग़ैर-मरद्दफ़ ग़ज़ल, यानी जिसमें सिर्फ़ काफ़िया का ख़्याल रखा गया है, रदीफ़ का नहीं। हालाँकि कहीं-कहीं काफ़िया तंग लग सकता है और  अरूज़ी मोहतरम  अरकानों के तराज़ू पर तोलने पर, यानी तकतीअ करने पर, कुछ मिसरों के वज़न में तोले-माशे का फ़र्क पा सकते हैं। चंद शेरों में आपको मुसल्सल ग़ज़ल सा मिज़ाज मिलेगा, मगर कुल मिलाकर यह एक ग़ैर-मुसल्सल ग़ज़ल है। -- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला)

ग़ज़ल
बात छेड़ो न  इस  ज़माने की
यहाँ सबको सनक कमाने की
कर लिए इंक़लाब जी भर जो 
उनको जल्दी है घर बसाने की
जो बहुत दूर जा चुके हों उन्हें
कोई  चाहत नहीं  बुलाने की
आदतन जो नशे में रहते हों
राह क्यूँ लें शराबख़ाने की
उठाके घाघरा ढँक लें चेहरा
ख़ब्त ऐसी चढ़ी लजाने की
मानने  वाले  मान  जायेंगे
क्या पड़ी है उन्हें मनाने की
इश्क़ का काम है तसल्ली का
जल्दबाज़ी  नहीं  मचाने  की
ज़िन्दगी इक ग़ज़ल पुरानी सी
चाह अब ना किसी फ़साने की
ज़लज़ला आना तो तय है फिर भी
है  ज़रूरत   उसे  बुलाने  की
.
#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

5 July 2021

*****


पेश है बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला की एक मुअद्दस और मुसल्सल ग़ज़ल !
*
सच को कलमबंद करने का जज़्बा इतना तगड़ा है
जब-जब शोर उठा सड़कों पर, हम  खिड़की से देखे हैं
मौसीक़ी का शौक़ हमारा भले छूट जाये थोड़ा
मज़लूमों-महक़ूमों की दुनिया खिड़की से देखे हैं
बेघर-बेदर लोगों की अफ़रा-तफ़री का वो आलम
रंग सियासत के ही सारे हम खिड़की से देखे हैं
फूटी क़िस्मत वालों का वह रेलमपेला भागमभाग
लाठी चलना गोली चलना सब खिड़की से देखे हैं
नारों का वह शोर हमें डिस्टर्ब भले ही करता हो
ज़ब्त किये जज़्बात बैठकर हम खिड़की से देखे हैं
भूख, ग़रीबी, लुटना-पिटना और बग़ावत का तूफ़ाँ
मरना-जीना, हँसना-रोना सब खिड़की से देखे हैं
लड़ना जिनका काम मुसलसल वो सड़कों पर लड़ते हैं
हम अदबी दुनिया के शहरी सब खिड़की से देखे हैं
एक ज़माना था सड़कों पर हम भी निकला करते थे
अब दुनिया का खेल-तमाशा बस खिड़की से देखे हैं
एक ज़लज़ला आयेगा अब बहुत हुआ सब कहते हैं
कब आयेगा कब आयेगा, हम खिड़की से देखे हैं
*
#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

11 July 2021

****

हम अपने दर्द से हँसी-मज़ाक़ करते हैं
तब कहीं जाके सलीके की बात कहते हैं

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

15 July 2021

****

बारिश में सड़कों पर घूमो आँसू छिप जाते हैं
मगर आप जब चाहो तब बरसात नहीं होती है

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

16 July 2021

****

जो कहते हैं हमको मुँहफट और अहमक़
उनको हम उजबक बकलोल कहा करते हैं
शायरी में नारेबाज़ी की करें जो शिक़ायत
तो अंँगरेज़ी ज़ुबान में 'लोल' कहा करते हैं

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

18 July 2021


****


बेगम साहिबा ने अपने ख़ास अंदाज़ में एक और ग़ज़ल कही है। क़द्रदानों की ख़िदमत में पेश है। ग़ौर फ़रमायें!
ग़ज़ल

-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला
दामन तो बहुत साफ़ मगर रूह पे धब्बे
नग़्मात में परछाइयाँ छन-छन के आ रहीं
कुछ शेर लिखे थे उन्हें खोजा तो ये पाया
बेगम उन्हें बघार के सालन पका रहीं
जज़्बात सब उड़ेलके क़दमों में धर दिया
वो अनमनी-सी सौंफ-सुपारी चबा रहीं
जो पाने को फ़रोख़्त हुए मुंतशिर हुए
कूड़े पे पड़ी चीज़ें वो गोमाता खा रहीं
चश्मा-ए-नूर अदब का बहता था जहाँपर
सरमाया ख़ूनो-गंद में लिपटी नहा रही
दंगाइयों की अदब की महफ़िल में बैठकर
तरक्कीपसंद शायरा कव्वाली गा रहीं
वो ज़लज़ला तो आना कर गया था मुल्तवी
सैलाब लिए आँधियाँ बस्ती में आ रहीं

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

19 July 2021


****


दिल्ली की इल्मी, अदबी और सक़ाफ़ती दुनिया की मुजस्सम और मुशक्कल तस्वीर पेश करती बेगम साहिबा की एक नयी ग़ज़ल! 

ग़ज़ल

-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला

जित्तन कबिताई करते हैं, मुत्तन लिखते हैं इतिहास
गोरखपुर का जलवा अब अफ़रोज़ हुआ है दिल्ली में
हाजीपुर का हलवा बिकता दरियागंज की गलियों में
सोनपूर के सभी जिनावर आ पहुँचे हैं दिल्ली में
रंग-बिरंगी चिड़ियों की नीलामी मण्डी हाउस में
ले ज़रीब पटना के पटवारी पहुँचे हैं दिल्ली में
ओहदे और ईनाम के ख़्वाहिशमंदों का भेड़ियाधसान
सत्ता के इमामदस्ते में इल्म कुट रहा दिल्ली में
आलिम-फ़ाज़िल लोगों का लेकर के टोपी-छाता-कोट
अहमक़-उजबक धौंस जमाते घूम रहे हैं दिल्ली में
शोहरत-दौलत की रक़्क़ासा के आगे-पीछे देखो
कल्चर के दल्लों-भँड़वों की सजी बरातें दिल्ली में
लकदक-चकमक नगरी में सरमाया नाच दिखावे है
इल्मो-अदब नाले में लेटे दारू पीकर दिल्ली में
लम्पट-आवारे अदबी दूकान सजाये बैठे हैं
सोशल डेमोक्रेटों की महफ़िलें जमीं हैं दिल्ली में
बतकुच्चन करने वालों ने धुआँ-धुआँ कर डाला है
लिबरल लिल्ली घोड़ों का है खेल-तमाशा दिल्ली में
फ़ासिस्टों को प्यार-मुहब्बत से इंसान बनायेंगे
अर्ज़ी लिखने वाले सब अक्सर जुटते हैं दिल्ली में
ख़ून जलाते मेहनतक़श के लिए अँधेरों की सौगात
गीदड़ बोलें कुत्ते रोवें चीलें उड़ती दिल्ली में
उम्मीदों और सपनों का शमशान फैलता जाता है
रोज़ हो रही ख़ून की बारिश ऐसा मंज़र दिल्ली में
एक ज़लज़ला आना ही है मुल्क के इस कूड़ाघर में
उड़ जायेगी सभी गंद ज़िन्दगी खिलेगी दिल्ली में
**
#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

20 July 2021

****

तीन दिनों पहले ज़लज़ला बेगम ने दो शेर कहे थे। अब चंद अशआर और जोड़कर एक मुकम्मल ग़ज़ल की शक़्ल दे दी है। आप भी ग़ौर फ़रमाइये और लुत्फ़ लीजिए!
*
ग़ज़ल

-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला

जो कहते हैं हमको मुँहफट और अहमक़
उनको हम उजबक बकलोल कहा करते हैं
शायरी में नारेबाज़ी की करें जो शिक़ायत
तो अंँगरेज़ी ज़ुबान में 'लोल' कहा करते हैं
ठलुए जो बैठे बस जुमले पगुराते हैं
उनको हम 'फटा हुआ ढोल' कहा करते हैं
झण्डा जो गाड़ा था अदब के मैदाँ में
लोग उसे 'सड़ा हुआ पोल' कहा करते हैं
दावा है थियरी में इज़ाफ़ा नया करने का
लोग 'शेखचिल्ली के बोल' कहा करते हैं
देस ये अपना बेगाना जिन्हें लगता है
दूर की बातें तोल-तोल कहा करते हैं
सोशल डेमोक्रेटों की पोशीदा बातें हम
लोगों के बीच खोल-खोल कहा करते हैं
लिबरल भकचोन्हर जमातों की बकबक सुन
'इनका तो डब्बा है गोल', कहा करते हैं
ज़लज़ला को देते मशविरा वो प्रैक्टिकल हरदम
'कमीनों से रक्खो मेलजोल', कहा करते हैं

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

21 July 2021


************


बेगम ज़लज़ला से कल मुलाक़ात हुई तो वह ज़रा अलग मूड में ही नज़र आईं। मैंने उन्हें अशोक वाजपेई की और प्रेमशंकर शुक्ल की कामुक-फूहड़ कविताओं के बारे में, उनपर फ़ेसबुक पर चली चर्चाओं के बारे में बताया और यह भी बताया कि कविता में नवरीतिकाल के जिस ऋतु का ये लोग आवाहन कर रहे हैं, उसमें विहार करने को कुछ बूढ़े और कुछ युवा नामधारी वामपंथी कवि-आलोचक भी आतुर हैं। 

बेगम साहिबा ने बुरा-सा मुँह बनाया, सामने पड़ा पानदान पास खिसकाया, सफ़ेद पान के पत्ते पर कत्था-चूना लगाकर काला-पीला ज़र्दा, लौंग-इलायची और किवाम डाला, गिलौरियों को मुँह में दबाया और लखनवी मिज़ाज छोड़कर अवधी ठेठपन के मूड में आते हुए उर्दू ग़ज़ल की जगह एक लोकगीत सुनाने लगीं!
उनका यह नया कमाल आपके सामने पेश कर रही हूँ:

हे बुढ़ऊ बनवारी हो!
कलाछेत्र के असील घोड़ा
तूँ तौ लीला बिहारी हो
कबिता के नन्दन कानन में
रंग-भरी पिचकारी हो
रंग में भीगि-भीगि के सगरी
रसिक भरैं किलकारी हो
राजाजी के महलि के पिछवारे
के तूँ फुलवारी हो
फेल कियो तूँ बत्सायन को
मस्तराम पर भारी हो
काब्य नाइका काम-अगिन में
दहकि भई मतवारी हो
साहित्तिक जमीनि नापै को
तूँ काबिल पटवारी हो
जिनके किछु टुकड़ा मिलि जइहें
ऊ न तोहें दुतकारी हो
लीला तुम्हरी देखि-देखि के
हमहुँ जाहुँ बलिहारी हो
हे बुढ़ऊ बनवारी हो!

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

26 July 2021

************

उसने जाते हुए एक पल को पलटके देखा 
इक अमानत है उमीदों की मेरे पास अभी

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

30 July 2021

*****************

सामाजिक जनवादी की यह फ़ितरत कितनी प्यारी है
गाली खाकर शुक्र मनाता  लात तो नहीं खाई है
अगर कभी फासिस्टी गुण्डे उसे पकड़ लतियाते हैं
खैर मनाता घर आता किस्मत ने जान बचाई है
-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कंँटीली_शायरी

................................

गज़ब गावदी अव्वल अहमक चोमू चुगद निराले हैं
राजघाट पर  रघुपति राजा राम सुनाने वाले हैं
मोदी की छाती में नेहरू का दिल ट्रांसप्लांट करके
फ़ासिस्टी आफत से अपना देश बचाने वाले हैं! 
-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला

#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कंँटीली_शायरी

........................................


भाड़ में जाये कमिटमेंट, उसूल बेंचे तेल
मंसूबा ग्रेट बनने का ही ग़र हो जाये फेल
ईनाम लो जलसों में जाकर चमक लो भाई मेरे
हुक़ूमत से भिड़ाओ कुछ बेहतर तालमेल

**

वो शायरी मुब्तिला थे, जल रहा था मुल्क़ जब
अर्ज़ी लिखी, गाये भजन, झोला उठाया, घर गये
हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गये
ईनामो-शोहरत मिल गयी, ओहदे मिले और मर गये
(ज़नाब अकबर इलाहाबादी से मुआफ़ी चाहते हुए) 

-- बेगम ज़लज़ला आफ़तुद्दौला
#बेगम_ज़लज़ला_आफ़तुद्दौला_की_कँटीली_शायरी

(30 Apr 2023)

.............................................................





No comments:

Post a Comment