Wednesday, January 06, 2021


दो मसलों को हमें स्‍पष्‍ट तौर पर अलग करके देखना चाहिए। पहला, मौजूदा धनी किसान-कुलक आन्‍दोलन की मांगें और उसका चार्टर। और दूसरा, विरोध और आन्‍दोलन करने का किसानों का जनवादी अधिकार। 

पहले मसले पर हम एक आलोचनात्‍मक रुख़ रखते हैं और स्‍पष्‍ट तौर पर मानते हैं कि मौजूदा आन्‍दोलन का चार्टर शासक वर्ग के ही एक धड़े, यानी खेतिहर बुर्जुआजी की मांग का प्रतिनिधित्‍व करता है और इसमें ग़रीब व निम्‍न-मंझोले किसानों व खेतिहर मज़दूरों के हितों की कोई नुमाइन्‍दगी नहीं है। उल्‍टे इस आन्‍दोलन की प्रमुख मांग ग़रीब व निम्‍न-मंझोले किसानों तथा खेतिहर मज़दूरों के खिलाफ़ जाती है। 

लेकिन दूसरे मसले पर हमारा स्‍पष्‍ट मानना है कि राजकीय दमन और जनवादी अधिकारों के हनन का एक अपवाद को छोड़कर हर सूरत में विरोध किया जाना चाहिए। अपवाद है फासीवादियों और धार्मिक कट्टरपंथियों व धुर दक्षिणपंथियों का राज्‍यसत्‍ता द्वारा दमन। हम उनके ''जनवादी अधिकारों'' के पक्षधर नहीं हैं। यह दीगर बात है कि फासीवादियों व धुर दक्षिणपंथियों के राज्‍यसत्‍ता द्वारा दमन के उदाहरण हमारे देश के राजनीतिक इतिहास में बिरले ही मिलेंगे। 

इस अपवाद को छोड़कर हम किसी भी सूरत में किसी के भी जनवादी अधिकारों के हनन का विरोध करते हैं और राजकीय दमन का विरोध करते हैं। चाहे किसी बुर्जुआ पार्टी के विरोध करने के जनवादी अधिकार का कोई फासीवादी या बोनापार्तवादी या सैन्‍य तानाशाह सरकार दमन करती है, तो हम उसके जनवादी अधिकार का समर्थन करते हैं, चाहें हम उनकी राजनीति, चार्टर व मांगों से असहमति रखें, तो भी। वजह यह है कि राजकीय दमन का विरोध न करके आप राज्‍य के ''दमन करने के अधिकार'' का समर्थन करते हैं, उसे वैध ठहराते हैं। इसलिए उपरोक्‍त अपवाद के अतिरिक्‍त हम हर किसी के जनवादी अधिकार की हिमायत करते हैं।

वैसे तो यह बात स्‍पष्‍ट है और सभी संजीदा लोग हमारे इस स्‍टैण्‍ड को समझते भी हैं, लेकिन कुछ कुलकवादी, कौमवादी और साथ ही बिन पेंदे के ''बुद्धिजीवी'' जानबूझकर हमारे पूरे स्‍टैण्‍ड को यूं पेश करने की कोशिश कर रहे हैं मानो हम धनी किसान आन्‍दोलन के दमन का समर्थन कर रहे हैं, जबकि सभी जानते हैं कि इस आन्‍दोलन के दौरान जब भी राजकीय दमन हुआ या उनके जनवादी अधिकारों पर हमला हुआ तो हमने उसका हर बार विरोध किया है। अब इस हरक़त के पीछे या तो निपट मूर्खता है या फिर ज़रूरत से ज्‍़यादा सयानापन; या दोनों का कोई घटिया मिक्‍सचर भी हो सकता है! यह भी एक किस्‍म की मौकापरस्‍ती ही है। लेकिन किसी भी संजीदा व्‍यक्ति को उपरोक्‍त बात समझाने की आवश्‍यकता नहीं है: आन्‍दोलन के वर्ग चरित्र, चार्टर व मांगों के प्रति आलोचनात्‍मक रवैया रखना या असहमति रखना अलग मसला है और किसी के विरोध व आन्‍दोलन करने के जनवादी अधिकार का समर्थन करना एक अलग मसला।

-- मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान

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