Wednesday, January 06, 2021

कुछ मामलों में सहिष्णुता से घटिया-घिनौनी कोई चीज़ नहीं होती


जैसे गरीबों और मेहनतकशों की सहिष्णुता। स्त्रियों की सहिष्णुता। दलितों और दूसरे उत्पीड़ितों की सहिष्णुता ।

जैसे ही कोई किसी ख़तरे या नुकसान के अंदेशे से सह लेने या चुप रह जाने की राय देता है, मेरी नज़रों से हमेशा के लिए गिर जाता है । डरा हुआ आदमी मरे हुए से भी हज़ार गुना बद्तर होता है ।

जब मैं मार्क्सवादी नहीं बनी थी, तभी धर्म से विरक्ति इसलिए पैदा हो गई थी क्योंकि वह औरतों को विनयशीलता और कर्तव्य-पालन के नाम पर दबना, सहना और दयनीय बनना सिखाता है ।

कातरता तो सहिष्णुता से भी अधिक घृणास्पद लगती है । मुझे लगता है कि दयनीय या कातर बनकर अपने व्यक्तित्व और मनुष्यता को अपमानित करने से पहले कोई आदमी आत्महत्या क्यों नहीं कर लेता !

मुझे बचपन में एक टीचर ने एकबार  बहाना खोजकर पीट दिया, क्योंकि वह मुझसे चिढ़ती थी और ऊधमी गैंग का लीडर समझती थी । बस क्या था ! मैं उसके ऊपर थूककर भाग गई । फिर जो हुआ वो आप सोच ही सकते हैं । एक और परपीड़क टीचर थी, मैंने उनकी कुर्सी की एक टाँग तोड़कर फिर जैसे-तैसे लगा दिया था । बैठते ही वो धराशायी हो गईं।

अन्याय और उत्पीड़न के विरुद्ध चुप तो कभी नहीं रहना चाहिए । हमेशा सहने और चुप रहने से आदमी में धीरे-धीरे जैविक बदलाव आने लगता है और वह कब केंचुआ या तिलचट्टा या कनखजूरा बन गया, खुद उसे ही नहीं पता चलता।

और जब आप केंचुआ, तिलचट्टा या कनखजूरा बन जाते हैं तो आपके स्वजन-परिजन निश्चिंत हो जाते हैं । आपके 'मेटामार्फोसिस' को 'सेलिब्रेट' किया जाता है और आपको 'आदर्श नागरिक'और 'सद्गृहस्थ' के प्रमाणपत्र और सम्मान प्रदान किये जाते हैं ।

जब आप इस समाज में व्यवस्थित हो जाते हैं तो आपको पता ही नहीं चलता कि आपके आसपास कितने केंचुए, तिलचट्टे, कनखजूरे रेंग-भाग रहे हैं । आपको सभी सामान्य मनुष्य नज़र आते हैं।

अपनी मनुष्यता को बचाने की शर्त है: अन्याय बर्दाश्त मत करो! बग़ावत करो ! मर जाओ लेकिन सहिष्णु, कातर, दयनीय और दुनियादार मत बनो ! उनसे नफ़रत करना सीखो जो इन्सानी भेस में केंचुए, तिलचट्टे और कनखजूरे हैं !

(6 Jan 2021)

No comments:

Post a Comment