Saturday, October 17, 2020

गुमशुदा लोग

 गुमशुदा लोग

जगह-जगह स्टेशनों पर, बसअड्डों की दीवारों पर 

पुराने, कभी-कभी अधफटे, इश्तहार

 चिपके मिलते हैं, धुँधली तस्वीरों के साथ,

"बेटा, तुम जहाँ कहीं भी हो, फ़ौरन घर 

वापस लौट आओ, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा,

तुम्हारी माँ ने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है ।"

ये इश्तहार जिनके लिए चिपकाये गये होते हैं,

उनमें से कई अरसा पहले घर लौट चुके होते हैं ।

कुछ को बरसों बाद कुंभ मेले में 

उसके गाँव-मुहल्ले के लोग 

संन्यासी वेश में पहचान लेते हैं ।

कुछ की लाशें दूर कहीं किसी नदी से 

निकाली जाती हैं या रेलवे लाइन से 

क्षत-विक्षत हालत में उठाई जाती हैं, 

किसी शहर के मुर्दाघर में कुछ दिन पड़ी रहती हैं और 

फिर गुमनाम मानकर जला या दफ़ना दी जाती हैं ।

कुछ कहीं किसी बड़े शहर की मज़दूर बस्ती में 

चाय की ठेली लगाते हुए 

फिर से एक घर बसाने की सोचते हैं 

और बरसों बाद घर उनकी चिट्ठी आती है ।

कुछ होते हैं जो रुकते नहीं किसी ठौर,

कहीं कोई घर नहीं बनाते,

किसी सरकारी दस्तावेज में दर्ज़ नहीं होते,

उनके पास कोई पहचान-पत्र नहीं होता,

उनके पास एक बहुत बड़ी दुनिया होती है,

और ढेर सारी कविताओं का मसाला होता है

जिनका कोई कच्चा मसौदा भी वे तैयार नहीं कर पाते

और उनका बोझ ढोते हुए वे एक दिन अचानक

हवा में गुम हो जाते हैं । 

उनकी कभी न लिखी जा सकी कविताओं की 

कुछ-कुछ पंक्तियाँ कभी-कभी दुनिया की

सबसे अच्छी कविताओं में पाई जाती हैं ।

उनकी बस इतनी ही निशानी बची रह जाती है 

जिनके सहारे आत्माओं के गुप्तचर उनतक 

पहुँचने की कोशिश करते रहते हैं ।

(17 Oct 2020)

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