सब्ज़ी-दूध-राशन वगैरा खरीदने के बाद दुकानदार जो पैसे वापस करते हैं उनमें एक रुपए-दो रुपए के सिक्के ज़रूर होते हैं । मैं उन्हें एक थैली में रखती जाती हूँ । आज आल्थी-पाल्थी मारकर महीनों में इकट्ठा हुए सिक्कों को धीरज के साथ गिना । कुल 387 रुपए निकले ।
इनके सदुपयोग का एक नायाब आइडिया भेजे में आया है । मिसिर जी मानहानि का जो रेट तय कर गये हैं, उस रेट से तो इतने पैसों से मैं न्यायपालिका, नेताओं, तरह-तरह के बड़े आदमियों और साहित्य-कला के मठाधीशों की एक महीने तक रोज़ाना मानहानि कर सकती हूँ -- यानी एक रुपया प्रति मानहानि की दर से ।
हाँ, मँहगाई के इस ज़माने में इनसबकी इज़्ज़त का रेट अगर बढ़ गया तो फिर मैं उतनी अधिक मानहानि नहीं कर पाऊँगी । लेकिन मुझे यह भी भरोसा है कि मँहगाई चाहे जितनी बढ़े, उनकी इज़्ज़त तो अब दो कौड़ी की ही रहेगी जिनकी मानहानि करने के लिए मेरा मन बुरी तरह कलबला रहा है ।
(11 Sep 2020)
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