सभी बुर्जुआ नेता पूंजीपतियों के कुत्ते हैं -- देसी कुत्ते !
बुर्जुआ न्यायपालिका तवायफों का कोठा है जहां इंसाफ़ की पतुरिया नाचती है और काले कोट वाले दल्ले ग्राहक फांसते घूमते हैं ।
संसद में सूअर लोटते हैं ।
मंत्रिमंडल की बैठकों में सधाये हुए बंदर-भालू-रीछ नाचते हैं ।
सत्ता के कृपाकांक्षी सभी बुद्धिजीवी तिलचट्टे, झींगुर, केंचुए और कनखजूरे हैं ।
सभी बुर्जुआ मीडिया वाले श्मशान के गिद्ध, कौव्वे और कुत्ते हैं ।
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अब बताइए, मैंने कितनों की कितने रुपए की मानहानि की ! जोड़कर बताइए, फ़ौरन हिसाब चुकता कर दूंगी । रेट प्रशांत भूषण वाला ही लगाइयेगा ! अलग-अलग रेट नहीं लगना चाहिए ! क़ानून को सबको एक निगाह से देखना चाहिए ।
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