एक शुभचिंतक भलेमानस हैं । बहुत परेशान रहते हैं कि हम और अधिक मेहनत और ईमानदारी से काम करके समाज को और अधिक जल्दी से क्यों नहीं बदल डालते !
आज फिर टकरा गये । पूछा,"आपलोग इतने दिनों से जो काम कर रहे हैं, उसका क्या नतीजा निकला है ?"
मैंने कहा,"पहले आप बताइए कि आप इतने दिनों से क्या करते रहे हैं और उसका क्या नतीजा निकला है ?"
नाराज़ हो गये और मुँह बिचका कर आगे बढ़ गये ।
(7सितम्बर, 2020)
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एक भाई साहब हैं । मैं उन्हें पहले ही इशारा कर देती हूँ कि अब मैं कोई हँसने वाली बात करने वाली हूँ । फिर तो उस बात पर वह छतफाड़ू ठहाका लगाते हैं और पेट पकड़कर देर तक हँसते रहते हैं ।
(7सितम्बर, 2020)
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एक फासिस्ट ने दूसरे फासिस्ट से कह,"फासिस्ट कहीं का!"
दूसरे ने फ़ौरन कहा,"तू फासिस्ट!" फिर पहले ने कहा"तू फासिस्ट!"
इसतरह वे घंटों एक दूसरे को 'तू फासिस्ट! तू फासिस्ट!' कहते रहे!
कहते-कहते थक गये। ऊब भी गये। दूसरा बोला पहले से,"अब हम दूसरा खेल खेलेंगे।" पहला राज़ी था।
अब दूसरा बोला पहले से,"तू मुझसे कम लोकतांत्रिक!"
फ़ौरन कहा पहले ने,"नहीं, तू मुझसे कम लोकतांत्रिक!"
यह विवाद, या कहें खेल भी घंटों चला। फिर से दोनों थक गये। बोले,"अब कल कोई और खेल खेलेंगे सेक्युलरिज्म या संविधान, देशप्रेम या विकास को लेकर।"
(इस बात का मुंबई में चल रहे तमाशे से कोई लेना-देना नहीं है)
(10सितम्बर, 2020)
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